.
कविता
*जल संग्रहण*
~~~~
जल बिन कुछ नहीं भाई,
समय बहुत ही दुखदाई।
दीखे नहीं परछाई,
संकट घड़ी जो आई।।
गलती नहीं बतलाना,
पाठ यह पढ़ ही लेना।
करना है जल संग्रहण,
सबकों यही समझाना।।
कुआं बावड़ी सब अपने,
तो फिर हमें क्यों डरना।
वृषा पानी का रुख बस,
इनकी तरफ ही करना।।
ताल-तैलिया गहरे कर,
जाये उसमें भी पानी।
बिन काम ही रोको मत,
बात यह भी समझानी।।
घर-घर में बने पुनर्भरण
पानी बह के न जाये।
बहुत उपयोगी विधी,
सभी मन से अपनाये।।
खेत-खेत डोली पास,
बने अब छोटे बांध।
पशु-पक्षी कलरव तान,
फिर से बजे देखो नांद।।
©®
रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा(राज.)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें