नूतन लाल साहू

प्रकृति का श्रृंगार

जब तक है तेरी जिंदगी
प्रकृति का श्रृंगार करो
प्रकृति की महिमा है,अति भारी
सुखी रहें संसारी
बचपन बीता खेल खेल में
और जवानी राग रंग में
सारा जीवन बीत रहा है
फुरसत न मिलेंगी काम से
महलों में रहो या झोपड़ी में
प्रकृति ही है,सुख का आधार
जब तक है तेरी जिंदगी
प्रकृति का श्रृंगार करो
हरा भरा जब धरती होगी
पुरवइया की पवन होगी सुरीली
अंबर गाना गाएंगी
झूम झूमकर नाचेंगी,धरती मां
स्नेह से भींगी,नई सुबह होगी
खुशी से सराबोर होगी
जब तक है तेरी जिंदगी
प्रकृति का श्रृंगार करो
अमन हो चमन में तो
सुमन मुस्कुराएगी
और साकार होगी सबकी
मधुर कल्पनाएं
धरती मां,जब हरी होगी
मन में उमंगे,भरी हुई होगी
न होगी कोई गम
न होगी मन में उदासी
मानव संस्कृति के ग्रंथों पर
नई सभ्यताएं लिखी जायेगी
जब तक है तेरी जिंदगी
प्रकृति का श्रृंगार करो

नूतन लाल साहू

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