एक पीली शाम
बिन जल,सब जलते है
जल को पाकर,सब फूलते फलते है
हम फूल कली है,महफिल कलिया के
इन फूलों कलियों को महकाते रहना
पावस पवन तुम जल बरसाओ
जन जन के मन को हरसाओ
किसिम क़िसिम के फूल फूले है
भारत मां के अंगना मा
बहुत ही खूबसूरत लगती है
सूरज की लालिमा शाम को
प्रकृति का पावन महीना में
एक पीली शाम न आवे
पानी की महिमा है अनमोल
इसका नही करो,कोई मोल
पानी तुझको वंदन है मेरा
बार बार अभिनंदन है तेरा
अन्न को पानी,तन को पानी
पानी तेरी अजब कहानी
यत्र तत्र सर्वत्र पानी
बिन पानी न रहेगा नर
और न ही रहेगी नारी
प्रकृति का पावन महीना में
एक पीली शाम न आवे
पंथ जीवन का चुनौती
दे रहा है हर कदम पर
कही कोई संदेश तो नही है
वक्त की अनिश्चितता का
प्रकृति ने मंगल शकुन पथ
अब तक है संवारे
वह कौन सा विश्वास है इंसान को
पर्यावरण से कर रहा है छेड़छाड़
बहुत ही खूबसूरत लगती है
सूरज की लालिमा शाम को
प्रकृति का पावन महीना में
एक पीली शाम न आवे
नूतन लाल साहू
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