कुमकुम सिंह

लहरें

समंदर की लहरों के तरह उठती है मन में तरंगे,
दिल के अंदर तक झकझोरती है यह तरंगे।

कभी यह सोच मुरझा जाती है,
 कभी यह सोच खुश हो जाती है।

और कभी विचलित कर जाती है दोनों ही तरंगे।

लहरों की तरंगे हो या मन की तरंगे ,
  समानता दोनों में होती है।

समुद्र की लहर तेज हो तो सारी वस्तुएं,
 उस समय उस लहरों में भी लिप्त हो जाती है।

मन की लहर तेज हो तो अनहोनी हो जाती है।

दोनों ही लहरों को शांत होना अति अनिवार्य है ,
परंतु लहरों को शांत करना इतना आसान भी नहीं है।

जब लहरें आती हैं खुशियों की आभाष भी कराती हैं,
तभी तो मन को एक ठंडक से सुकून पहुंचाती है।

जैसे अंदर तक डूब जाने का मन करता है,
 उस शीतल जल में खो जाने का दिल करता है।

कुदरत ने भी खूब बनाया है,
 हर जगह इंसान को प्रकृति के रूप में समझाया है।

हम मनुष्य ही नादान है अपनी भावना में बह जाते हैं, कुदरत ने तो  एक एक रूप को दर्शाया है।

लहरों का गति हो या मन के गति हो दोनों का सामान्य होना बहुत जरूरी है,
     
                 कुमकुम सिंह

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