निकिता चारण

प्रकृति सौंदर्य

यह धरती कितनी अनुपम,कितनी प्यारी है ।
इसके कण-कण में सजी यह प्रकृति सारी है।।

चिड़ियों की चहक में 
फूलों की महक में
 चांद के चमकने में 
सूरज के दमकने में 
तारों के टीमटीमाने में
नदियों के बहने में 
समंदर के गहरे होने में 
पहाड़ के अडिग रहने में
प्रेम के बीज बोने में 
नवअंकुरण में 
नव स्फूर्ण में
 हवा के चलने में 
सांसो से पलने में
आरंभ से प्रारंभ में
प्रकृति को *जोने में,
सजी यह प्रकृति सारी है

अस्तित्व की देन हमको चिरकारी है
 भौतिकता की आड़ में प्रकृति का ना नाश करो 
जागो मनु जीवन में प्रभात करो
अपना ना‌ सर्वनाश करो…

जोना- देखना।
स्थानिय शब्द।


मौलिक, स्वरचित रचना -V.P.A.निकिता चारण
E-mail- nikitacharan106@gmail.com

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