नूतन लाल साहू

पिता एक उम्मीद

एक ऐसा गीत जिसको
सृष्टि सारी गा रही है
जब था मेरा बचपन
चिंता मेरे पास नहीं आई
क्या खूबसूरत थी वो घड़ी
कालिमा तो दूर
चिंता की लकीर भी
पलक पर थी न छाई
क्योंकि पिता एक उम्मीद था
आंख से मस्ती झपकती
बात से मस्ती टपकती
थी हंसी ऐसी,जिसे सुन
बादलों ने भी शर्म खाई
दिन कट रहा था,ऐसे कि कोई
पिता की गोद से बढ़कर
स्वर्ग तो कुछ भी नही है
क्योंकि पिता एक उम्मीद था
सब कुछ प्यारा प्यारा लगता
साथ थी प्रकृति हमारी
सूरज चांद सितारे नभ के
महक रही थी,सभी दिशाएं
धन दौलत से भी बढ़कर
पिता का प्यार था
अनमोल खजाना
शब्दों से जड़े मोती
पिता का था दुलार
भूल नही पाया अभी तक
हंसी के वो पल
जब था मेरा बचपन
चिंता मेरे पास नहीं आई
क्योंकि पिता एक उम्मीद था

नूतन लाल साहू

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