जया मोहन

पतंगा
शमा ने कहा आओ मेरे पतंगे
हम सुकून की थोड़ी साँसे और जी ले
फिर तो मेरी लौ जलेगी
तेरे जींवन को खत्म करेगी
मेरा क्या मैं जल कर बुझ जाऊँगी तू हट जा मत फना हो मुझ पर
हँस कर पतंगा बोला  मैं बेवफा नही मेरी दिलबर
तू तो    मेरी मंज़िल है
तुझको पाना मेरी ज़िद है
ये सच है हमारी उम्र कम है
क्या करे रब ने मोहब्बत इतनी दी है
पगली तू क्यों रोती है
तू भी तो मेरे लिए जलती है
न जाने किन कर्मो का श्राप विधाता ने हमे दिया है
जो ऐसी प्रीत से हमे रंगा है
मेरे मरने पर तेरी लौ थरथराती है
खुद को जला कर तू चुपके से बुझ जाती है

स्वारचित
जया मोहन
प्रयागराज

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...