सुधीर श्रीवास्तव

संस्कार
********
माना कि आधुनिकता का 
मुलम्मा हम पर चढ़ गया है,
हमनें सम्मान करना जैसे
भुला सा दिया है।
पर ऐसा भी नहीं हैं कि
दुनियां एक ही रंग में रंगी है,
सम्मान पाने लायक जो है
उसे सम्मान की कमी नहीं है।
हम लाख आधुनिक हो जायें
पर हम सबके ही संस्कार भी
मर जायेंगे, 
ऐसी वजह भी नहीं है।
हमारी परंपराएं कल भी जिंदा थीं 
आज भी हैं और कल भी रहेंगी,
कुछ सिरफिरे भटक गये होंगे
यह मान सकता हूँ मगर,
विद्धानों की पूजा कल की ही तरह
आज भी हो रही है।
विद्धान पूजित था,है और रहेगा
विद्धानों की पूजा करने वालों की कमी
न कभी पहले ही थी और न ही आज है,
डंके की चोट पर ऐलान मेरा है
न ही कभी कमी होगी।
विद्वान पहले की तरह पूजा जाता है
आगे भी सर्वत्र पुजता ही रहेगा,
विद्धानों का मान,सम्मान, 
स्वाभिमान कभी कम नहीं हुआ है
और आगे भी नहीं होगा।
◆ संस्कार
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माना कि आधुनिकता का 
मुलम्मा हम पर चढ़ गया है,
हमनें सम्मान करना जैसे
भुला सा दिया है।
पर ऐसा भी नहीं हैं कि
दुनियां एक ही रंग में रंगी है,
सम्मान पाने लायक जो है
उसे सम्मान की कमी नहीं है।
हम लाख आधुनिक हो जायें
पर हम सबके ही संस्कार भी
मर जायेंगे, 
ऐसी वजह भी नहीं है।
हमारी परंपराएं कल भी जिंदा थीं 
आज भी हैं और कल भी रहेंगी,
कुछ सिरफिरे भटक गये होंगे
यह मान सकता हूँ मगर,
विद्धानों की पूजा कल की ही तरह
आज भी हो रही है।
विद्धान पूजित था,है और रहेगा
विद्धानों की पूजा करने वालों की कमी
न कभी पहले ही थी और न ही आज है,
डंके की चोट पर ऐलान मेरा है
न ही कभी कमी होगी।
विद्वान पहले की तरह पूजा जाता है
आगे भी सर्वत्र पुजता ही रहेगा,
विद्धानों का मान,सम्मान, 
स्वाभिमान कभी कम नहीं हुआ है
और आगे भी नहीं होगा।
◆ सुधीर श्रीवास्तव
       गोण्डा, उ.प्र.
     8115285921

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