मधु के मधुमय मुक्तक
🌹🌹 *योग* 🌹🌹
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◆ योग निहित मन स्वस्थ हो , दैनिक हो यह काज।
नित्य नियम पालन करे, समयाधारित राज।
ऋषि पतंजलि दिव्यतम् , दिए योग का ज्ञान,
सतत् सभ्यता गति मिले , योगी करता नाज।।
◆ विश्व गुरू भारत सदा, योग बनी पहचान।
ऋषि मुनि करते योग ही, ध्यान साधना जान।
ध्येय यही संकल्प यह, काया रहे निरोग,
स्वयं मनन चिंतन करे, ईश्वर का कर ध्यान।।
◆ योग राम ने जब किया, मर्यादित तब भूप।
योग किया श्री कृष्ण ने, योगी राज स्वरूप।
योग ज्ञान अति श्रेष्ठ है, इसका नहीं विकल्प,
योग सगर अनुपम किए, गंग धरे अवधूत।।
◆ योग दिवस कहता यही, नित्य नियम स्वीकार।
प्रबल सुखद अनुभूति हो , मन से दूर विकार।
विश्व इसे स्वीकारता, भारत की यह शान,
सकल विश्व में योग का, अद्भुत हुआ प्रचार।।
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*गीत*
*योग*
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सुंदर आभा युक्त कांति यह , योग साधना लाती है ।
एक नवल अहसास ह्रदय दे, जीवन सुखद बनाती है।।
महर्षि पतंजलि ईश रूपी, योग धरा पर लाए थे।
स्वस्थ रहें सब रहें सुरक्षित, ऐसा मंत्र बताए थे।
बहे सतत् यह निर्मल धारा, भाव ह्रदय अपनाती है।
सुंदर आभा युक्त कांति.......।।
वर्तमान गर अपनाता है, तब भविष्य सुख पाता है।
नित्य नियम से प्रातः बेला, योगा कर्म निभाता है।
शुद्ध मिले गर श्वास मनुज को, आयु बढ़ती जाती है।
सुंदर आभा युक्त कांति.......।।
प्राणायाम करे जब कोई , ध्यान ईश का भाता है।
यह भक्ति का मार्ग दिखाता, कर्म विदित शुभ ज्ञाता है।
यह अध्यात्म स्वयं अपनाए, परम गति सुख धाती है।
सुंदर आभा युक्त कांति.........।।
इक्कीस जून यह योग दिवस , सभी एक संकल्प करो।
नित्य नियम से योग साधना , करके नवल प्रयोग करो।
एक अलौकिक शक्ति स्वयं में, योग स्वयं *मधु* लाती है।
सुंदर आभा युक्त कांति......।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*21.06.2021*
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