चेतना
*1* सब लोग करें अपने मन की,
हमको अब काम सदा करना।
मानव तन ये अनमोल मिला,
कर कर्म सदा पडता भरना।।
भवसागर पार लगा हमको,
दुखिया दुख दूर सदा हरना।
मत देख सुनो अपने तन की,
नदियाँ बहती बहते झरना।।
*2* अतिवीर सदा हरते दुख को,
भवसागर पार हमें करिए।
भटका मन पाप पुण्य समझे,
अब दूर करो विपदा सुनिए।।
हम तो ठहरे मति मूढ सदा,
अब छोड़ दिया उत्तम चुनिए।
हम क्रोध सदा झटसे करते,
अब सोच सके मन में भरिए।।
आनंदी@©️®️
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