नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

आस्था का आभाष विश्वास       


सेठ जमुना दास की एकलौती बेटी नम्रता बचपन से ही धर्म भीरु
और भारतीय परम्परा में विश्वास करने वाली माँ बाप का अभिमान थी। पढ़ने लिखने में सदैव अव्वल अपने मोहल्ले शहर का गुमान रहती मोहल्ले आस- पास के पड़ोसी अपने बच्चों को नम्रता जैसा बनने की नसीहत देते रहते।
नम्रता धीरे सारे सदगुणों की दक्ष हो चुकी थी पाक शास्त्र ,सिलाई कड़ाई बुनाई ,नृत्यसंगीत आदि शिक्षा भी स्नातकोत्तर करने के उपरांत पूरी हो चुकी थी।अब सेठ जमुना दास को अपनी सर्वगुण संपन्न पुत्री के लिये योग्य वर कीतलाश थी। मगर मुश्किल यह था की नम्रता के योग्य क़ोई वर मिल ही नहीं पा रहा था।एका एक एक दिन सेठ जमुना दास के मित्र सेठ मंशा राम अचानक पुराने मित्र जमुना दास से मिलने आये सेठ जमुना दास ने बचपन के मित्र का जोरदार स्वागत किया सेठ मंशा राम को पुराने मित्र से मीलकर अपार प्रसन्नता हुई दोनों अपने बचपन की यादो को ताज़ा करते और उन यादों  को बातों ही
बात  साझा कर रहे थे।की अचानक सेठ मंशा राम के मुख से निकल ही पड़ा की यार जमुना मेरा लड़का जवान हो चुका है उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुका है सुशील और सौम्य है उसके लिये बिरादरी में क़ोई
लड़की हो तो बताओ ।तब तक नास्ते से भरा ट्रे लेकर नम्रता कमरे में दाखिल हुई ट्रे मेज पर ज्यो ही रखा सेठ जमुना ने कहा बेटा ये है सेठ मंशा राम इनका आशीर्वाद लो ये हमारे बचपन केमित्र है ।नम्रता ने सेठ मंशा राम के पैर छुकर आशीर्वाद लिया ।मंशा राम ने आश्चर्य से कहा जमुना ये तेरी बेटी है जमुना ने ठहाके लगाते हुये कहा हां मंशा भगवान् ने मेरे हिस्से में यही एक अदत लक्ष्मी पुत्री के रूप में बक्शी है।सेठ मंशा ने कहा फिर तो भगवान् ने मुझे आज सही मुहूर्त पर तेरे पास भेजा है जमुना ने कौतुहल बस पूछा क्या मतलब तब मंशा ने कहा आज मेरी पुत्री की तलाश पूरी हुई मैं नम्रता को अपने पुत्र की बधू और अपनी बहू बेटी बनाना चाहता हूँ। सेठ जमुना को बैठे बैठाये मन की मुराद मिल गयी और दोनों ने अपने बेटी बेटों का विवाह निश्चित कर दिया।सेठ मंशा राम के एकलौते बेटे मृगेन्द्र और सेठ जमुना दास की एकलौती बेटी नम्रता का विवाह बड़े धूम धाम से संपन्न हुआ। बचपन की दोस्ती रिश्ते में बदल गयी दोनों ही परिवार में ख़ुशी का वातावरण वैवाहिक संबंध से बन गया।धीरे धीरे एक वर्ष बीतगया दोनों ही परिवारों में दिन दुनीरात चौगुनी तरक्की होती रही एकाएक दोनों परिवारों की ख़ुशी में चार चाँद लगाने वाली ख़ुशी आ गयी नम्रता माँ बनने वाली थी नौ माह बाद नम्रता ने बेहद खूबसूरत बेटे को जन्म दिया दोनों परिवारों के खुशियों का  ठिकाना ही न रहा।नवजात का नामकरण अन्नपरशन आदि संस्कार संपन्न कराये गए नवजात का नामकरण  संस्कारिक नाम माधव रखा गया घरेलू नाम
कारन रखा गया धीरे धीरे दोनों परिवारों के लाड प्यार में करन बड़ा होने लगा और देखते देखते एक वर्ष का हो गया  पहली वर्षगाँठ धूमधाम से मनाई गयी सारे मित्र, रिश्तेदार बेशकीमती तोहफे का  नज़राना तोहफा लेकर आये दावते हुई खुशियो का आदान प्रदान हुआ पहले वर्ष गाँठ के उत्सव समाप्ति के बाद मध्य रात्रि को करन जगा हुआ था और मकान के हर कमरे आँगन में बेरोक टोक घूम खेल ऊधम मचा रहा था की अचानक एक जहरीले सांप ने उसे डस लिया उसकी तत्काल मृत्यु हो गयी सेठ मंशा राम के परिवार में हाहाकार मच गया धीरे धीरे यह खबर पूरे कस्बे में फ़ैल गयी और सेठ जमुना दास भी अपने पुरे पतिवार के साथ सेठ मंशा राम के घर आ पहुंचे सबका रोते रोते बुरा हाल था।अब सुबह हो चुकी थी सबने मिल कर
यह निर्णय लिया की कारन् का अंतिम संस्कार कर दिया जाय सब लोग जब करन के अंतिम संस्कार के लिये करन को उठाने के लिये चले तभी नम्रता हाथ में तलवार लिये रणचंडी की भाँती
बोली खबरदार किसी ने यदि मेरे करन को हाथ लगाया वह  मरा नहीं है रात अधिक शोर शराबे के कारण थक कर सौ रहा है। लोंगो के लाख समझाने के बाद भी नहीं मानी और जिद्द पर अड़ी रही नम्रता के आँख में ना आँसू थे ना ही कोई बेचैनी डाक्टर को बुलाया गया जिसे देखकर नम्रता ने पुनः रौद्र रूप धारण कर लिया डॉक्टर भय के मारे भाग खड़े हुए।।
जब किसी का कोइ बस नहीं चला तब लोगो ने नम्रता को करन् के शव के साथ अकेला छोड़ दिया ।
नम्रता करन का शव गोद में लेकर घर के आँगन में बैठ गयी और कहती बेटा सो जब नीद पूरी हो तब उठाना ये लोग तुम्हारी नीद में खलल डाल रहे है और तुम्हे सदा की नीद सुलाने का इंतज़ाम कर रहे है। मेरे रहते तुह्मारा क़ोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता मैं माँ हूँ तेरी रक्षा करुँगी।इस तरह बेटे के शव के साथ एक दिन दो दिन बीतते गए तेज धुप वारिश् ने भी नम्रता के मातृत्व शक्ति की परीक्षा लेने की बहुत कोशिश की परन्तु नम्रता को उसके इरादे से डीगा नहीं सका सेठ मंशा राम की हवेली एक नया तीर्थ स्थल में तब्दील हो गया नम्रता को देखने इतनी भीड़ होने लगी की प्रसाशन के लिए चुनौती बन गयी ।नम्रता का आभास एहसास वास्तव में उसके मातृत्व की ममता की आस्था की अवनि आकाश पराकाष्ठा लोंगो को आश्चचर्य चकित कर रखा था। करन् को मरे पैतालीस दिन  हो चुके थे मगर उसके शारीर से ना कोइ दुर्गन्ध थी ना ही सड़ने के लक्षण लोगों के लिए यह कौतुहल का विषय था। नम्रता भी पैतालीस दिनों से जैसा करन को लेकर गोद में बैठी थी वैसी ही बैठी एक टक कारन् को निहारती ना भूख ना प्यास सिर्फ कारन के नीद से जागने का आभास विश्वास छियालिसवे दिन करन एकाएक सुबह जैसे रोज उठता था सूरज की लालिमा के साथ मुस्कूराते हुये उठा माँ माँ करता नम्रता की आँखों में तब वात्सल्य के आंसू छलके चारों और नम्रता के मातृत्व ममत्व का शोर नम्रता कलयुग में ऐसी माँ जिसने मृत बेटे का जीवन काल जमराज से छीन लिया।
लोंगो का कहना था कि मातृत्व शक्ति
दूँनिया में कुछ भी असंभव को संभव
कर सकती है ये कोई आभास विश्वाश नहीं यह तो आस्था के अतिस्त्व माँ की
ममता है।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर

************************************

--जन्मों के प्यार का इंतज़ार------   


जन्म दिन मुबारख हो बेटा रिया  आज तुम्हारा दसवीं का परिणाम भी आने वाला है आज का दिन तुम्हारे जीवन के लिये बहुत महत्व्पूर्ण है आज का दिन  तुम्हारी ढेर सारी खुशियो और जीवन कि दिशा दृष्टि के लिये बहुत महत्व पूर्ण है। तो बेटा जल्दी से तैयार हो जाओ सबसे पहले हम लोग मंदिर जाएंगे उसके बाद महेश सिंह ने पत्नी मनोरमा से कहा आज रिया का जन्म दिन है और हर साल इस साल से कुछ ख़ास हम सभी मंदिर जाएंगे आप और मिलिंद जल्दी से तैयार हो जाओ मैंने रिया से तैयार होने के लिये बोल दिया है।महेश सिंह मनोरमा मिलिंद रिया हम दो हमारे दो कुल चार सदस्यों का परिवार था महेश मनोरमा  दोनों बहुत खुश थे एक तो रिया के पेपर बहुत अच्छे हुए थे दूसरे कुल पुरोहित ने भी बताया था कि रिया बिटिया कि जन्म में बृहस्पति प्रवल है अतः शिक्षा के क्षेत्र में सदैव नाम और ख्याति अर्जित करेगी महेश, मनोरमा बेटे मिलिंद बेटी रिया को लेकर शहर के सारे  मंदिरों  पर गए आशिर्बाद लिया लगभग दिन के एक बजे घर लौटे देखा कि रिया कि स्कूल टीचर मैडम लियोनी पहले से ही पड़ोसीकृपा शंकर मिश्र के घर बैठी थी ।महेश मनोरमा को बहुत आश्चर्य हुआ कि पड़ोसी कृपा जी कि कोइ संतान तो रिया के साथ पढ़ती नहीं फिर रिया कि स्कूल टीचर वहाँ क्यों क्या ख़ास बात हो सकती  है। इसी उधेड़ बन में महेश और मनोरमा अपने घर का दरवाज़ा खोल ही रहे थे कि अचानक कृपा शंकर मिश्र और मैडम लियोनी आते ही एक साथ बोल उठे बधाई हो रिया बिटिया ने दसवीं कि परीक्षा में पूरे जनपद में प्रधम स्थान प्राप्त किया है ।कृपा शंकर जी ने बड़े आत्म अभिमान से कहा कि हमे आपका पड़ोसी होने पर गर्व है रिया बिटिया ने सारे मोहल्ले और ख़ास कर सभी पड़ोसियों का सर गर्व से ऊँचा कर दिया ।मनोरमा और रिया ने बड़े बिनम्र भाव से कहा कि रिया कि मेहनत आप सभी लोगो कि शुभकामना और आशिर्बाद से बिटिया ने सफलता हासिल किया है। घर का दरवाजा खोलते हुए मनोरमा ने मैडम लियोनी और कृपा शंकर जी से अंदर आने का आग्रह किया सभी लोग महेश सिंह जी के ड्राइंग रूम में दाखिल हुए और बैठे तब रिया ने सबका पैर छूकर आशिर्बाद लिया तब तक मिलिंद सबके लिये मिठाई लेकर आया सबने रिया कि शानदार सफलता कि मिठाई खाई तब मैडम लियोनी ने बोलना शुरू किया महेश जी चुकी रिया ने इतनी शानदार सफलता मेरे विद्यालय से प्राप्त कि है अतःमै चाहती हूँ कि रिया आगे भी हमारे स्कूल की छात्रा बनी रहे महेश और मनोरमा को क़ोई आपत्ति नहीं हुई वहां बैठे कृपा शंकर जी ने भी सहमति जताई मैडम लियोनी ने फिर बोलना शुरू किया कि जिन स्टूडेंट ने स्कूल प्रतिष्ठा बड़ाई है उनके पेरेंट्स को हम लोग सम्मानित करना चाहते है अतः आप मेरा अनुरोध निमंत्रण स्वीकार करे फिर मैडम लियोनी ने रिया को अपने पास बुलाकर कहा वेल डन माय स्वीट बेबी गॉड ब्लेस्  यू और जाने कि इज़ाज़त मागने लगी लियोनी के जाने के बाद घर में जश्न का माहौल हो गया मोहल्ले में सभी को मालूम हो चूका था कि महेश सिंह की बेटी रिया ने दसवी क्लास में जिले में सबसे अब्बल आयी है ।धीरे धीरे मोहल्ले वालों के आने और बधाईयों का सिलसिला शुरू हुआ ।सभी ने रिया कि शानदार सफलता के लिये बधाई और शुभकामनाये दी महेश  और मनोरमा को बेटी रिया पर गर्व महसूस हो रहा था ।छुट्टियां समाप्त होने वाली थी और नए सत्र का शुभारम्भ होने वाला था रिया नए सत्र नए क्लास में पढ़ने गयी तो बहुत से पुराने सहपाठीयो कि जगह नए स्टूडेंट्स ने ले रखी थी।पहले दिन स्कूल के हर क्लास में रिया को ले जाया गया और उसकी शानदार सफलता से नए पुराने सभी को प्रेरणा के रूप में अवगत कराया गया। स्कूल के सभी शिक्षकों ने बड़ी गर्मजोशी से रिया का स्वागत किया स्कूल में विल्कुल नया स्टूडेंट जिसने दसवी कि परीक्षा दूसरे जनपद से पास की थी यहाँ आगे कि पढ़ाई के लिए आया था बड़ी तन्मयता से स्कूल कि पहले दिन की गतिविधियों को देख रहा था नाम भी तन्मय पाण्डेय । वह बार बार रिया कि खूबसूरती मासूमियत को निहारता पता नहीं क्यों तन्मय कि कोमल भावनाये रिया कि तरफ पहले दिन ही आकर्षित हो गयी उसके मन में यह बात बार आती कि रिया ही उसकी सबसे अच्छी दोस्त हो सकती है। तन्मय प्यार जैसी किसी भी जज्बे से वाकिफ नहीं था शाम के चार बजे स्कूल कि छुट्टी हुई तन्मय अपने आप को रोक न सका वह रिया के पास जाकर बोला मै तन्मय पाण्डेय तुम्हारी क्लास में पड़ता हूँ हम दोनों को अगर पढ़ाई के दौरान किसी हेल्प कि जरुरत पड़ी तो आपस में साझा एवं सहयोग कर सकते है ।रिया ने उस वक्त तो क़ोई ध्यान नहीं दिया और धन्यवाद कहकर चली गयी दोनों अपने अपने घर चले गए रिया कि माँ और महेश सिंह ने पूछा बेटा स्कूल में नए क्लास के सत्र का पहला दिन कैसा रहा रिया ने सारा वाकिया बताया सुनकर माँ बाप का सीन गर्व से चौड़ा हो गया ।रात को जब रिया सोने के लिये अपने कमरे में गयी तब यकायक उसके सामने तन्मय का चेहरा घुमाने लगा बार बार तन्मय के कहे शब्द हाय मै तन्मय पाण्डेय रिया के कानो में गुजने लगे रिया को भी इसका क़ोई मतलब समझ नहीं आ रहा था छत कि दीवार देखते देखते कब सो गयी पता नही चला। समझ में नहीं आ  रहा था उधर तन्मय भी सोच रहा था कि रिया ने उसको नोटिस क्यों नहीं किया दूसरे दिन दोनों ही क्लास में अपनी अपनी सीट पर बैठकर क्लास करने लगे।जुलाई से सितम्बर तक रिया और तन्मय एक दूसरे पर क़ोई ख़ास ध्यान नहीं दिया।सितम्बर में टीचर पेरेंट्स मीटिंग में उमेश सिंह और मनोरमा को रिया के बेस्ट परफोर्नेन्स के लिये सम्मानित किया जाना था।तन्मय के पिता धीरेन्द्र पाण्डेय एक साधारण किसान थे वे धोती कुर्ता में आये थे समारोह प्रारम्भ हुआ प्राचार्य अल्वर्ट के साथ लियोनी मैडम समारोह में उपस्थित थी उन्होंने बोलना शुरू किया रेस्पेक्टेड पेरेंट्स आज हम रिया के मदर फादर को सम्मानित करने के लिए गेदर हुए है रिया ने डिस्टिक में नबर वन रैंक हासिल कर स्कूल का नाम रौशन किया हैं रिया के इस अचीवमेंट में उसके मदर फादर के कंट्रीब्यूसन को नेग्लेक्ट नहीं किया जा सकता है अब हम प्रिंसिपल साहब से रिक़ुएस्ट  करते है कि रिया के मदर फादर को ऑनर करे पूरा हाल तालियों के गडग़ड़ाहट से गूँज उठा। फिर प्राचार्य अल्बर्ट ने मनोरमा और महेश सिंह का सम्मान करने के बाद बोलना शुरू किया उन्ही गार्जियन का बच्चा कुछ अच्छा करता है जिनके गार्जियन जिम्मेदार और बच्चों को अच्छा कल्चर देते है आज हमे मनोरमाऔर महेश सिंह जैसे गार्जियन बनने कि जरुरत है हाल एकबार फिर तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा। प्रिंसिपल अल्वर्ट ने आगे बोलना शुरू किया मैं इस अवसार पर धीरेन्द्र पाण्डेय जी को इग्नोर नहीं कर् सकता जिनका सन् तन्मय पाण्डेय पुरे प्रदेश में ट्वेंटी फिफ्थ रेन्क पाकर हमारे स्कूल में डॉटर रिया के क्लास में ही स्टडी कर रहा है एकाएक हाल में तालियों कि गड़गड़ाहट गूंजने लगी रिया ने बड़े गौर से तन्मय कि तरफ मुस्कुराते हुये देखा। प्रिंसिपल अल्वर्ट बोलते रहे उन्होंने बताया कि धीरेन्द्र पाण्डेय जी एक साधारण किसान है और उन्होंने अपने सन् को हाई कल्चर दिया है यह आल गार्जियन के लिए इंस्पिरेशन है ।
 प्रिंसिपल अल्वेर्ट के सम्बोधन के बाद समारोह सम्पन्न हुआ सभी अभिभावक अपने अपने घर को चले गए रिया घर पहुंचकर तन्मय से पहले दिन कि मुलाक़ात के ख्यालो में खो गयी अगले तीन दिनों तक विद्यालय बंद था।तीन दिन की छुट्टिया रिया के लिये मुश्किल से बीती वह जल्दी से जल्दी खुद को तन्मय का बेस्ट फ्रेंड बनना चाहती थी इसके लिये आवश्यक था कि वह तन्मय से शीघ्र मिले छुट्टी बीताने के बाद स्कूल खुला रिया सबसे पहले स्कूल के मेन गेट पर तन्मय का इंतज़ार करने लगी तन्मय जब स्कूल मैन गेट पर ज्यों ही पहुंचा रिया  फ़ौरन उसके पास पहुंची और बड़े भोले अंदाज़ में बोली तन्मय आई ऍम सॉरी मैं आपको तब  समझ नहीं पाई जब आप पहले दिन हमारे पास आये थे क्या हम अब वेस्ट फ्रेंड हो सकते है तन्मय अपने अंदाज़ में मुस्कराते हुये बोला साँरी भी क्या वर्ड है जिसने भी इस वर्ड कि खोज कि होगी बहुत बुद्धिमान होगा यह एक शब्द सारे तकलीफ को  भुला देता है। फिर बोला हाँ बाबा मुझे तुम्हारा बेस्ट फ्रेंड बनना है ।मेरे लिये प्राउड है रिया ने तुरंत सवाल किया रोज तो तुम स्कूल सबसे पहले पहुचते हो आज देर क्यों हो गयी  तन्मय ने मुस्कुराते हुये कहा कभी कभी भगवान् भी अच्छाई कि परख करते छोटी मोटी परीक्षाये लेता रहता है आज मेरी सायकिल पंचर हो गयी थी ।दोनों अपने वार्तालाप में मसगुल थे कि उधर से गुजरती मैडम लियोनी ने दोनों को वार्तालाप करते देखा कहा गूड तुम दोनों एक दूसरे के साथ हेल्दी कॉम्पेटिसन के साथ दोस्ती करो और स्कूल का नाम रौशन करो।अब लगभग प्रतिदिन रिया और तन्मय आपस में बात करते दोनों ही विज्ञानं और गणित के छात्र थे अतः किसी भी  बिषयागत प्रॉब्लम पर बात करते और मिलकर समाधान खोजते रिया के माँ बाप महेश और मनोरमा को भी रिया कि इस दोस्ती पर क़ोई एताराज नहीं था ।धीरे धीरे पूरे स्कूल में फ्रेंडशिप ऑफ़ टू एक्ससिलेन्ट ऑफ़ स्कूल के नाम से तन्मय और रिया की जोड़ी मशहूर हो गयी ।इसी तरह फर्स्ट इयर के होम एग्जाम में दोनों ने अपने कठिन परिश्रम से सयुक्त रूप से फर्स्ट रैंक हासिल कर् सेकंडियर यानि बारहवी कक्षा की तैयारी में जुट गए दोनों ने अपनी एक्ससलेंट फ्रेंड शिप ऑफ़ स्कूल को कायम रखते अपने अपने मकसद पर आगे बढ़ रहे थे सेकेंडियर के एग्जाम हुये रिजल्ट आया तो फिर दोनों के मार्क्स बराबर थे और दोनों ने ही जिले नहीं वल्कि पूरे प्रदेश में पांचवा स्थान हासिल कर अपने स्कूल का मान बढ़ाया ।अब रिया और मयंक का स्कूल से विदा हो कॉलेज या यूनिवर्सिटी जाने का वक्त आ गया स्कूल द्वारा फिर से दोनों के विदाई समारोह सम्मान के लिये रखा गया सम्मान समारोह में प्राचार्य ने फिर कहा  रिया के मेरे स्कूल में पढने के बाद और तन्मय के आने के बाद शहर का हर गार्जियन कि चाहत है कि उनका वार्ड इस स्कूल में पढे यह अचीवमेंट हमारे और हमारे स्कूल के लिये बहुत प्राउड का सब्जेक्ट है। फ्यूचर में हम कोशिश करेंगे कि हमारे यहाँ पड़ने वाला हर स्टूडेंट रिया और तन्मय को फॉलो करे।अब रिया और तन्मय दोनों ही उच्च शिक्षा के अध्य्यन के लिये कॉलेज या विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने हेतु निर्णय अपने अपने अभिभावको पर छोड दिया। तन्मय अपने गांव चला गया रिया को लगता कि उसकी सफलता तन्मय के बिना अधूरी है और वह तन्मय कि यादो और स्कूल में बीते दिनों कि याद में खोई रहती  ।पंडित धीरेन्द्र पाण्डेय ने अपने बेटे को जे एन यू पढ़ाई के लिये भेजा तन्मय को आसानी से दाखिला मिल गया और वह अपने अध्ययन कार्य में जुट गया उसे अपने किसान पिता के सपनो को सच साबित करने का जूनून था। मगर नियत कुछ और खेल खेलना चाहती थी अचानक एक दिन तन्मय लेक्चर रूम में बैठा अपने खयालो में खोया था तभी प्रोफेसर  वाजिद लेक्चर रूम में दाखिल हुए और क्लास शुरू किया जब प्रोफेसर वाजिद कि नज़र क्लास में बैठी एक नई लड़की पर पड़ी तभी उन्होंने इशारे से उस लड़की को खड़े  होने  के लिये कहा वह ज्यो ही खड़ी हुई प्रोफेसर वाजिद ने पूछा आपका नाम रिया सर तब भी तन्मय ने क़ोई ध्यान नहीं दिया फिर प्रोफ़ेसर वाजिद ने पूछा कि इस क्लास में तुम्हारा क़ोई मित्र है रिया ने तुरंत जबाब दिया यस सर प्रोफेसर वाजिद ने पूछा कौन रिया ने जबाब दिया तन्मय पाण्डेय अब तन्मय ने अपना सर घुमा कर देखा तो वास्तव में रिया ही थी। उसको अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था प्रोफेसर वाजिद ने तन्मय पाण्डेय से पूछा कि क्या  रिया को जानते हो तन्मय ने कहा यस सर हम दोनों ही एक ही स्कूल में पड़ते थे और एक ही रैंक से टॉप किया था। प्रोफेसर वाजिद ने कहा गुड तुम दोनों  एक दूसरे का ख्याल रखना दिल्ली में अक्सर नए स्टूडेंट के साथ कुछ न कुछ गलत हो जाता है तुम दोनों बाहर से आये हो और एक दूसरे को अच्छी तरह जानते और समझते हो तन्मय और रिया ने स्वीकारोक्ति से सर हिलाया इसके बाद क्लास शुरू हुआ क्लास ख़त्म होते ही तन्मय रिया बाहर निकले तो तन्मय ने पूछा यहाँ कैसे आ गयी? रिया ने कहा कि तुम जे एन यू जाकर पड़ो और प्रशासनिक सेवाओं कि तयारी करों तोऔर  मैं भी यहाँ आ गयी वही उद्देश्य लिये जो तुम लेकर आये हो।चलो अच्छा ही हुआ अब हम दोनों मिलकर दिल्ली में जे एन यू में टॉप करेंगे और हां मैं गर्ल्स होस्टल में रहती हूँ और आप जनाब तन्मय ने  कहा मैं अपने दूर के रिश्तेदार के घर पर रहता हूँ रिया और तन्मय दोनों को अनजान महानगर में जरुरत थी दोनों एक दूसरे के पूरक थे दोनों  कि मुलाकाते रोज होती और अध्य्यन के विषयो पर दोनों एक दूसरे कि जानकारी साझा करते। लेकिन अब दोनों में इन मुलाकातो का अर्थ बदला हुआ था दोनों को प्यार के आकर्षण कि हद  अधिक अनुभूति होने लगी और दोनों कि पहली मुलाकात अब सहपाठी कि सीमा से पार कर प्रेम  कि पराकाष्ठा तक पहुँच गयी दोनों एक दिन भी एक दूसरे से मिले बिना नहीं रह सकते थे ।लेकिन दोनों के शैक्षिक स्तर पर उनके प्यार का कोईं प्रभाव नहीं पड़ा दोनों ने स्नातक कि परीक्षा में अपना लोहा पुनः जे एन यू में मनवाया तीन वर्ष कैसे बीत गए पता ही नहीं चला एका एक दिन रिया के घर से उसके मामा  रमेश सिंह जी दिल्ली आये और रिया से गोरखपुर घर चलने को कहा और बताया कि माँ मनोरमा को लकवा मार गया है अतः उनकी देख रेख के लिये चलना होगा ।चूंकि भाई मिलिंद डॉक्टर होकर अमेरिका में शिफ्ट हो अमेरिकन लड़की से शादी कर चुका था अतः उसका माँ कि सेवा के लिये आना संभव नहीं था रिया ने मामा जी से तन्मय से मिलने कि अनुमति मांगी और वह तन्मय से मिलते ही फुट फुट कर रोने लगी तन्मय ने उसे चुप कराते हुये कहा मेरा प्यार इतना कमजोर नहीं कि उसकी आँखों से मोती से भी कीमती आंसुओ का शैलाभ आ जाए। बताओ क्या बात है रिया ने माँ मनोरमा के बीमार होने कि बात बताई और कहा हमे अभी गोरखपुर जाना है तन्मय ने कहा कि घबराओ नहीं यह तुम्हारे लिए सौभाग्य कि बात है कि तुम्हे माँ कि सेवा का अवसर मिल रहा है ये मत भूलो कि तुम्हारे अस्तित्व और संस्कार कि स्तम्भ है आज उस माँ को अपनी बेटी कि जरुरत है। जिसने अपनी बेटी के लिये ना जाने कितनी रातें इसलिये जाग कर बिताई होंगी कि बेटी सो सके बहुत सी अपनी  इच्छाओं  का दमन किया होगा जिससे कि तुम्हारी इच्छाये पूरी हो सके यह मेरे लिये आत्म अभिमान कि बात है कि मेरा प्यार मेरी रिया जीवन मूल्यों कि परीक्षा में जा रही है वहाँ भी एक नया कीर्तिमान स्थापित करेगी। रही बात मेरे मिलने कि तो मैंने आज तक तुम्हारे अलावा किसी दूसरी लड़की का चेहरा नहीं देखा प्यार कि नज़र से अतः मै वचन देता हूँ कि जीवन के अंतिम पल में भी तुम ही मेरे साथ होगी हर जन्म में तुम ही मेरा प्यार रहोगी तुम्हे मुझमे मिलना ही होगा मैं जन्म पे जन्म लेते हुये तुम्हारा इंतज़ार करता रहूँगा या जन्म जन्म तुम्हारे साथ रहूँगा दोनों ने एक दूसरे को प्यार कि दुहाई की बिदाई दी ।रिया मामा जी के पास लौटी और सामान पैक करना शुरू कर दिया और मामा जी के साथ गोरखपुर चलने कि तैयारी करने लगी उसके मन में अपने प्यार के प्रति आत्म संतोष और विश्वास का भाव था सफर कि सारी तैयारी होने के बाद रिया मामा जी के साथ गोरखपुर चलने के लिये तैयार हो स्टेशन रवाना हुई नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उसकी ट्रेन भी तैयार थी रिया मामा रमेश के साथ ट्रेन में बैठी थोड़ी देर बाद  ट्रेन भी चल दी पूरी रात सफ़र करने के बाद रिया मामा जी के साथ दूसरे दिन बारह बजे दिन में गोरखपुर पहुँच गयी और लगभग आधे घंटे बाद वह अपने घर माँ मनोरमा और पिता महेश के सामने खड़ी थी ।माँ को जब रिया ने देखा माँ मनोरमा  बिस्तर पर लेटी घर के छत को एक टक निहारते ही जा रही थी रिया ने माँ के पास जाकर उसके सर पर हाथ फेरती बोली माँ मैं आ गई हूँ अब आप चिंता ना करो मनोरम ने जब बेटी रिया को देखा तो उसे गले लगाने कि कोशिश में उठने का अथक प्रयास करती रही मगर उनके शारीर में ना तो शक्ति थी ना ही चेतना सिर्फ उनकी आँख में विवसता कि अश्रु धरा का प्रवाह फुट रहा था रिया माँ कि इस दशा को  देखकर फुट फुट कर् रोने लगी पिता महेश और मामा रमेश ने रिया को सात्वना दिलाशा दे कर चुप कराया ।अब माँ कि सेवा ही रिया के जीवन का वर्तमान ध्येय बन गया था वह बेटी होने के फ़र्ज़ को जिए जा रही थी हर तीसरे दिन डॉक्टर चेक करने आता मगर माँ मनोरम कि हालत सुधरने कि बजाय और गंभीर होती जा रही थी भाई मिलिंद भी पिजड़े में फड़फड़ाते किसी पंक्षी की भांति डॉक्टरों से प्रतिदिन बात करता और चुकी वह खुद भी एक डॉक्टर था तो उचित सलाह भी देता ।धीरे धीरे  एक साल माँ मनोरमा को बिस्तर पर बीमार पड़े हो चुके थे ।तन्मय प्रतिदिन रिया को उसकी माँ के स्वास्थ कि जानकारी बाबत एक पत्र लिखता मगर रिया जबाब नहीं दे पाती प्रतिदिन के पत्रो को पढ़ती और सभाल कर रख लेती काल  अपनी निरंतर गति से चल रहा था लगभग दो साल बीत गए। माँ मनोरमा कि हालत जैसी कि तैसी ही थी अंततः महेश सिंह ने बेटी रिया से कहा बेटा तेरी माँ की नसीब में बीमार रहना ही लिखा है अतः तुम माँ कि देख रेख के साथ कुछ अध्ययन भी शुरू करो ग्रेजुएसन हो ही गया है बी एड कर लो रिया को बात समझ में आयी और उसने बी एड का फार्म भरा उसे तुरंत दाखिला मिल गया उसने कालेज जाना भी शुरू कर् दिया लेकिन माँ कि देख भाल में क़ोई कमी नहीं रखी इधर प्रतिदिन तन्मय के पत्रों का शिलशिला जारी रहा ।रिया ने बी एड किया एम एड किया माँ कि सेवा भी पूरी निष्ठां से करती रही माँ को बीमार बिस्तर पर पड़े पड़े पांच साल गुजर चुके थे मगर उसकी हालत में सुधार कि बात तो दूर नहीं  बिस्तर पर पड़े रहने से कई और बीमारियों ने जकड़ लिया डॉक्टरों ने उसके बचने कि रही सही उम्मीद भी छोड़ दी मिलिंद डॉक्टरो से निरंतर बात करता अपनी जानकारी के अनुसार माँ कि हालत को भगवान पर छोड़ दिया मिलिंद ने पिता महेश सिंह से बहन रिया के बिवाह के लिये कहा पिता महेश को भी महसूस हुआ कि बेटा ठीक कह रहा है  महेश सिंह ने भी हाँ करते हुये बताया कि गोरख पुर के बड़हल गंज निवासी उनके बचपन के मित्र सतमन्यु सिंह जो उत्तर प्रदेश पुलिश में इंस्पेक्टर थे और भिंड में डांकुओ से मुठभेंड में शहीद हुये थे का पुत्र समरेंद्र सिंह उनकी जगह पर अनुकम्पा पर  इन्स्पेटर नियुक्त हुआ है उसी से रिया का विवाह करना है क्योकि मैंने और सतमन्यु ने समरेंद्र और रिया का रिश्ता बहुत पहले ही पक्का कर दिया था मिलिंद भी इस सच्चाई को जनता था अतः उसने तुरंत हामी भर दी महेश सिंह ने रिया को बुलाया और समझाने के लहजे में बोले कि बेटी परया धन होती है उसे एक ना एक दिन बाबुल का घर छोड़ना ही होता है और तेरी माँ कि हालत सुधरने का नाम नहीं ले रही इसकी भी इच्छा यही है कि तुम्हारी शादी धूम धाम से होते हुए देखे मैंने अपने बचपन के मित्र स्वर्गीय सतमन्यु सिंह ने बचपन में तेरा और समरेंद्र का रिश्ता निश्चित कर दिया था। मैं जानता हूँ बेटी तुम्हे यह रिश्ता रास नहीं आएगा मै यह भी जानता हूँ कि तुम तन्मय को चाहती हो मगर तन्मय से तुम्हारा विबाह इस जन्म में सम्भव नहीं है तन्मय का पिछले पांच वर्षो से निरंतर पत्रो का आना तुम्हारे और तन्मय के प्यार का प्रमाण है मैं जनता हूँ तन्मय बहुत अच्छा लड़का है मगर मैं और मेरा समाज बिजातीय बिबाह कि अनुमति नहीं देता ।हमारा परिवार राजपूतो का है और तन्मय भूमिहार इसके अलावा भी बहुत कारण है जो तुम्हे बताना आवश्यक नहीं समझाता।
 रिया पापा को बहुत समझाने कि कोशिश करते उसने कहा पापा तन्मय को भी आप उतना ही जानते है जितना मुझे तन्मय बहुत अच्छा लड़का है शाकाहारी है अच्छे परिवार खानदान का उसके पिता किसान होते हुये भी अपने बेटे को अच्छे संस्कार दिये है तन्मय मुझे ज्यादा खुश रख सकेगा और देखिये माँ कि बीमारी में उतना दूर रहते हुये भी एक दिन भी ऐसा नहीं गया जिस दिन उसने माँ के स्वास्थ् के विषय में जानकारी के लिये पत्र न लिखा हो वह माँ और आपको भी उतना ही सम्मान करता है जितना मै और मिलिंद भैया जितना खुद अपने माँ बाप को इज़्ज़त देता है रही बात जाती कि तो जाती में भी वह हमसे उच्च ही है मेरी पसंद है मिलिंद भैया भी इस रिश्ते को पसंद करेंगे। पिता महेश सिंह ने कहा मिलिंद को समरेंद्र का रिश्ता पसंद है रिया ने कहा की भैया को तन्मय के बारे में आपने बताया ही नहीं होगा मैं भैया से बात करती हूँ महेश सिंह ने आदेशात्मक लहजे से कहा खबरदार जो तुमने मिलिंद से इस सम्बन्ध में और कुछ बात किया तो तुम्हारे लिये रिश्तों के सभी दरवाजे बंद हो जाएंगे रिया ने फिर पापा को समझने के लहजे में कहा कि भैया ने तोअन्तर्धर्मीय विवाह कर मानवीय मूल्यों को तरजीह दी है हम तो तन्मय जो उच्च कुल का भारतीय है इतना सुनते ही महेश सिंह आग बबूला हो गए जैसे उनकी दुखती रग पर रिया ने हाथ रख दिया हो बड़े ही  क्रोध में कहा तेरी माँ तो मरणासन्न है ही यदि तुमने और बहस इस सम्बन्ध में किया तो मेरा मरा हुआ मुँह देखेगी ।अब रिया के पास कोइ जबाब नहीं था वह रोती हुई माँ के  पास गयी माँ ने जब रिया को देखा तो बोलने कि कोशिश करती अपनी सबसे प्यारी औलाद से कुछ कहना चाहती मगर बेबस लाचार अपनी बेटी कि आँखों का आंसू देखती उसके आँखों में उसी तरह अश्रु धारा बहने लगे जैसा रिया के दिल्ली से वापस आने के बाद बहे थे ।माँ बेटी कि विवसता के आंसू देख कर विधाता भी अपनी विधान पर सोचने को विवस हो गया लेकिन रिया कि तकदीर भी उसीने लिखी थी अतः अपने निर्धारित भविष्य का खेल वह देखता रहा।रिया किसी तरह हिम्मत करके उठी और उसने तन्मय को एक पत्र लिखा पत्र में उसने तन्मय को सम्बोधन में लिखा प्रियतम हमारे प्यार का इस जन्म में परवान चढ़ना संभव नहीं है मेरे पापा ने मेरी  शादी कहीं और बचपन में तय कर राखी थी और वहीं मेरी शादी करना चाहते है मै विवस नहीं हूँ मगर मम्मी पापा कि परिवरिश के संस्कारिक संसार के रीती रिवाज को निभाना मेरा नैतिक तायित्व है वह मैं निभाने जा रही हूँ। लेकिन तुम मेरा इंतज़ार करना क्योकि मैं जब तक तुम्हारा प्यार नहीं पा लेती हूँ तब तक जन्म दर जन्म लेती रहूंगी तुम्हारी रिया पत्र पोस्ट करने के बाद उसने अपने आंसू पोछे और अब वह एक निर्जीव निरुत्साह जीवन्त शारीर या यूँ कहे कि कठपुतली या रोबोट कि तरह रह गयी थी जिसमे भाव और आत्मा नाम की कोइ जागृति नहीं थी सिर्फ कठपुतली या रोबोट जिसका संचालन उसके पिता के हाथ में था ।तन्मय ने रिया का पत्र प्राप्त किया पढ़के बाद उसे अपने प्यार रिया पर भरोसा और बढ़ गया उसे यकीन हो गया कि रिया का निर्णय उसके आत्मीय बोध का सच्चा  प्यार है। प्यार शारीरिक वासनाओं और भौतिक बंधनो से ऊपर है वह रिया का इंतज़ार करता रहेगा चाहे जितने बार जन्म लेना पड़े ।
 वह पूर्व कि भाँती रिया के माँ के स्वस्थ के जानकारी के लिये पत्र लिखता रहा और रिया उसे उसके प्यार की अमानत समझ सहेज कर रखती गयी और वह भी समय आ गया जब रिया को अपना प्यार अपना घर बार छोड़कर ससुराल जाना था महेश सिंह ने रिया कि शादी में रिया का  पिता बनकर रिया का कन्या दान किया तो अपने स्वर्गीय मित्र सतमन्यु कि तरफ से उसे उसके सुखी जीवन कि गारन्टी दी रिया का पति समरेंद्र और सास शांति देवी रिया को पाकर बहुत खुश थे उनको उनकी कल्पनाओ से अधिक खुबसूरत बहु और रिश्ता मिला था ।रिया कि शादी में अमेरिका से मिलिंद भी आया था उसने अपनी लाड़ली बहन कि बिदाई बड़े भाई के फ़र्ज़ का क़र्ज़ निभाते हुये किया रिया ससुराल जाने से पूर्व माँ के पास गयी और बंद जुबा और आँखों में बहती अश्रुधारा से माँ से अंतिम विदाई ली पता नहीं क्यों उसे आभास हो गया था कि उसके जाते ही माँ भी दुनियां छोड देगी माँ से भवनात्मक विदा लेकर वह ससुराल जाने के लिये बाबुल के घर से रुखसत हुई ।रिया के जाने के बाद घर वीरान हो गया तीन दिन बाद मिलिंद कि अमेरिका कि फ्लाइट थी विवाह कि भीड़ भाड़ से घर खाली हो चुका था अब मनोरमा कि देख भाल करने को रिया नहीं थी मनोरमा कि नजरे बार बार रिया को ढूंढ रही थी और बेबस लाचार आँखों से आंसू बहा रही थी मगर रिया तो सदा के लिये जा चुकी थी अन्ततः मनोरमा ने रिया के ससुराल जाने के तीसरे दिन जिस दिन मिलिंद की अमेरिका कि फ्लाइट थी दुनियां छोड़ दी महेश सिंह पर जैसे आफत का पहाड़ टूट पड़ा ।रिया के हाथों कि मेहंदी भी हल्कि नही पड़ी थी किसी तरह से मनोरमा का अंतिम संस्कार हुआ रिया भी आयी मगर अब घर वीरान हो चुका था अब सिर्फ घर में मिलिंद और उसके पापा महेश सिंह जी ही रह गए थे चुकी मिलिंद अमेरिका से अकेले ही बहन रिया के बिवाह में आया था उसकी अमरिकन पत्नी  कुछ आवश्यक कारणो से नहीं आ पायी थी मिलिंद ने पापा महेश सिंह से कहा कि क्यों न इस मकान और अन्य प्रापर्टी जैसे गाव कि खेती बाड़ी  कि देख भाल का जिम्मा मामा रमेश जी को सौंप दे और प्रापर्टी का एटॉर्नी रिया को नियुक्त कर आप मेरे साथ अमेरिका ही चले महेश सिंह को यह बात जच गयी उन्होंने एडवोकेट जयंती लाल जी से पवार ऑफ़ एटॉर्नी और कस्टोडियन रमेश सिंह के पक्ष में बनवा कर एक एक प्रति रिया और रमेश को देने के बाद निश्चिन्त हो गए पत्नी मनोरमा के तेरही के तीसरे दिन मिलिंद महेश सिंह रिया और समरेंद्र साथ साथ एयर पोर्ट गए और भाई मिलिंद और पिता को रिया ने अमेरिका के लिये विदा किया रिया और समरेंद्र बड़हल गंज लौट आये हवाई जहाज हवा से बाते करता आकाश में उड़ता जा रहा था महेश सिंह के दिमाग में एक  बात बार बार आ रही थी कि यदि अमेरिका में उनकी अमेरिकन बहु ने उन्हें मन से नाही स्वीकार किया तो क्या होगा जिसकी संभावना थी लेकिन उन्हें इस बात का संतोष था कि यदि ऎसा हुआ तो उन्हें अच्छी खासी पेंशन मिलती है वे भारत वापस आकर ईश्वर को जैसा मंजूर होगा वैसी जिंदगी जिएंगे।
 मिलिंद पापा के साथ अमेरिका पहुँच गया और माहेश् सिंह को फौरी तौर पर वैसा कुछ महसूस नहीं हुआ जैसा कि उन्हें भारत से आते समय डर सता रहा था।अब रिया अपनी सास शांति देवी के साथ रह रही थी समरेंद्र कि पोस्टिंग दूसरे जनपद में चौकी प्रभारी के रूप में हो गयी वह वहां कार्य भार ग्रहण कर चुका था उसे पुलिस कि नौकरी में घर आने  का मौका नहीं मिलता रिया अकेले में हमेशा तन्मय कि यादों में खोई रहती थी इसे सौभाग्य कहे  या दुर्भाग्य समरेंद्र कि पोस्टिंग उसी जगह थी जहाँ तन्मय का घर था । तन्मय भी प्रसासनिक सेवा कि तैयारी के लिये दिल्ली ही रहता था वह तीन चार महीने कि छुट्टी में घर आया था जब उसे पता लगा कि उसके मोहल्ले में स्थित पुलिस चौकी पर कोई नैजवान् प्रभारी आया है तो वह मिलने चला गया पहली मुलाक़ात दो नौजवानो कि धीरे धीरे दोस्ती में बदल गयी ।अब दोनों अच्छे दोस्त बन चुके थे दोनों का मिलना जुलना रोज कि आदतो में सम्मिलित रोज मर्रा की जीवन शैली बन गयी ।समरेंद्र ने अपने दोस्त तन्मय से कहा कि मेरी नई शादी है सोचता हूँ कि परिवार ले आऊँ कुछ दिन परिवार को भी साथ रखु पता नहीं पुलिस कि नौकरी में कब ऐसी जगह पोस्टिंग हो जाए कि परिवार रखना सम्भव ही न हो तो दोस्त एक अच्छा सा पारिवारिक किराये के मकान कि ब्यवस्था कर दो पुलिस वालों को जल्दी क़ोई मकान किराये पर नहीं देता ।तुम लोकल हो तुम्हारे माध्यम से मकान किराये पर आसानी से उपलब्ध हो जाएगा तन्मय ने कहा दोस्त यह बहुत छोटी सी बात है आप समय निकालो मैं कुछ मकान दिखा देता हूँ तुम्हे जो पसंद हो किराए पर ले लेना ।दूसरे दिन तन्मय समरेंद्र को मकान दिखाने ले गया दो तीन मकान देखने के बाद उसे एक मकान पसंद आया जिसका अग्रिम किराया देकर समरेंद्र बोला कि अगले सप्ताह मैं परिवार लेने जाऊँगा ।अगले सप्ताह समरेंद्र घर गाया तो माँ शांति देवी ने कहा तू तो बिलकुल अपने बाप कि तरह पुलिस वाला बन गया है उन्होंने पुलिस कि नौकरी कि निष्ठा में जान दे दी और मुझे अकेला छोड गए तुम्हे तो अपनी नई नवेली दुल्हन के लिये फुरसत नहीं समरेंद्र ने कहा माँ तुम तो जानती हो कि पुलिस कि नौकरी में दिन रात कोल्हू के बैल कि तरह खटना पड़ता है और हर समय खतरे भी रहते है लेकिन मैं अब सोचता हूँ कि रिया को जितने दिन भी मौका मिले साथ रखूं माँ शांति देवी को लगा की समरेंद्र ने उसके मन कि बात कह दी शांति देवी ने तुरंत सहमति दे दी एक दिन घर रहने का बाद समरेंद्र रिया को लेकर अपने साथ चला गया रिया किराये के मकान को एकदम सजा सवारकर एक खूबसूरत आशियाने कि शक्ल दे दी ।परिवार लाने के बाद पहले दिन अपनी पोलिस चौकी जब समरेंद्र गया सबसे पहले उसने तन्मय को बुलवाया और कहा दोस्त मैं अपना परिवार ले आया हूँ और रोज मर्रा कि जरुरत जैसे गैस कनेक्सन अखबार दूध आदि कि व्यवस्था करवा दो चूकी दोनों हम उम्र थे अतः दोस्ती में औपचारिकता नहीं थी तन्मय ने समरेंद्र के कहे अनुसार उसी दिन सारी व्यवस्थाये कर दी ।रिया को कोई तकलीफ नहीं थी तन्मय अक्सर समरेंद्र से चौकी पर ही मिल लेता इस तरह लगभग एक माह बीत गए ।एक दिन जब तन्मय समरेंद्र से मिलने चौकी पर गया तब समरेंद्र ने कहा तन्मय तुमने हमारी गृहस्ती बसाने  में इतनी मदद कि है हमारे घर पर तुम्हारा एक कप चाय का हक तो बनाता ही है ऐसा करो तुम आज शाम को हमारे घर आओ ।तन्मय चला गया और समरेंद्र भी डियूटी पर गस्त पर निकल पड़ा जब शाम समरेंद्र घर पहुंचा उसके आधे घंटे बाद तन्मय भी पहुच गाया तन्मय के पहुचते ही समरेंद्र ने कहा भाई तन्मय आपके शहर और आपके घर में आपका स्वागत है तन्मय सहम सा गया अपने पुलिस वाले दोस्त कि बात सुनकर और बोला समरेंद्र क्या बात करते हो समरेंद्र ने कहा ठीक ही तो कह रहा हूँ शहर तुम्हारा है और मकान तुम्हारी वजह से मुझे मिला है ।अब बेवजह का सवाल छोड़ो और बैठो तन्मय ड्राईंग रूम के शोफे पर बैठा समरेंद्र अंदर गया और पत्नी रिया को चाय लेकर आने को बोला और आकर ड्राईंग रूम में बैठ गया दोनों दोस्त आपस में गप्पे लड़ाने में मशगूल थे तभी रिया चाय लेकर ड्राईंग रूम दाखिल हुई रिया ने ज्यो ही तन्मय को देखा उसके होश उड़ गए उसके हाथ में चाय का ट्रे गिरने ही वाला था कि समरेंद्र ने सभल लिया और ट्रे मेज पर रखते बोला अरे दोस्त मेरी बीबी तो तुम्हे देख कर चकरा गयी क्या ख़ास बात है तुमसे तो हम तो रोज ही मिलते है तन्मय कि स्थिति और भी गभ्भिर थी उसे तो पूरी दुनियां घूमती नज़र आ रही थी पल भर के लिये रिया
तन्मय कि नजरे मिली और सदियों कि बाते कर गयी । तन्मय कुछ बेचैन होने लगा वो  बैठा तो समरेंद्र के ड्राईंग रूम में जरूर था मगर उसका मन अतीत में रिया के साथ गुजरे वक्त कि यादों में खो गया तन्मय सोचने लगा नियति कौन सा अजीब खेल उसके साथ खेल रही है उसने जल्दी जल्दी चाय ख़त्म की और तन्मय से जाने कि इज़ाज़त लेकर बहार निकल गया जल्दी जल्दी घर पहुंचा और रिया के खयालो में खो गया उसे ना तो भूख थी ना ही प्यास थी सिर्फ रिया के प्यार कि चाह की राह उसे यक़ीन नहीं था कि रिया कि उसकी मुलाक़ात ऐसे मुश्किल दो राहे पर होगी वह बड़ी दुविधा कि स्थिति में था। किसी तरह रिया कि यादों में जागता रात बीती सुबह वह सामान्य दिखने की और खुद की भावनाओं पर नियंत्रण करने कि कोशिश करता रहा शाम होते ही वह समरेंद्र से मिलने गया और समरेंद्र उसे अपनी बुलेट पर बैठा घर लेता चला गया फिर साथ बैठकर चाय पीना और गप्पे लडाना दो तीन बार समरेंद्र तन्मय को साथ अपने साथ घर ले गया अब तन्मय के मन से झिझक कम हो गयी वह अक्सर समरेंद्र से मिलने जाता कभी समरेंद्र के साथ उसके घर चला जाता कभी समरेंद्र गश्त में हल्के में चला जाता तो तन्मय अकेले ही समरेंद्र के घर पहुच जाता और रिया के साथ घंटो बात करता रहता  यह सिलशिला चलता रहा  एकाएक एक दिन शाम को समरेंद्र से तन्मय मिलने गया और वहाँ से समरेंद्र अपने चौकी क्षेत्र के ग्रामीण इलाके में गस्त पर निकल गया इस बात को समरेंद्र को जरा भी इल्म नहीं था कि तन्मय उसकी अनुपस्थिति में भी उसके घर जाता है उस दिन समरेंद्र को गस्त करते रात के तीन बज गए तन्मय और रिया में आपस में बात करने में मशगूल थे तभी समरेंद्र ने दरवाजा खटखटाया दरवाजा  तन्मय ने ही खोला समरेंद्र के होश् उड़ गए उसने आश्चर्य से पूछा तुम इतनी रात यहाँ क्या कर रहे हो तन्मय ने कहा रिया ने कहा बैठो जब तक वो नहीं आ जाते मै बैठ गया बातो ही बातो में पता ही नहीं चला कब इतना टाइम हो गया समरेंद्र ने तन्मय से कहा मित्र शरीफ व्यक्ति इतनी रात को किसी के घर उसकी अकेली बीबी से बात नहीं करते । तन्मय अपने घर चला गया समरेंद्र बिना कुछ कहे सो गया कहते है कि पुलिस शक के बिना पर असली मुजरिम तक पहुँच जाते है समरेंद्र सुबह उठा और अपने चौकी पहुँच कर् उसने अपने सबसे विश्वाश पात्र सिपाही को तन्मय के विषय में जानकारी हासिल करने के लिये गोपनीयता कि हिदायत के साथ लगा दिया और खुद अपने पड़ोसियों से तन्मय के अपनी अनुपस्तिति में आने के बाबत सूचना इकठ्ठा किया तो पता चला कि तन्मय लगभग रोज रात्रि के दी तीन बजे तक समरेंद्र के घर से   बहुत दिनों  आता जाता देखा जा रहा है कोई बोलता इसलिये नहीं है कि एक तो पुलिस से सम्बंधित और दूसरे दोस्ती का मामला ।समरेंद्र के दिमाग में क्या चल रहा था किसी को नहीं पता समरेंद्र अंतर्मुखी व्यक्तित्व था जिसका अंदाज़ा लगा पना बहुत कठिन था एक सप्ताह बाद समरेंद्र द्वारा नियुक्त विश्वसनीय सिपाही ने तन्मय के बचपन से वर्तमान तक का पता लगा कर बता दिया उसने बताया कि रिया और तन्मय इंटरमीडिएट से साथ साथ पढ़ते थे दोनों में बहुत प्यार था रिया ने तन्मय से शादी के लिये बगावत कर दी थी मगर दोनों का विवाह रिया के पिता महेश सिंह जी के जिद्द के कारण नहीं हो पाया समरेंद्र ने जानकारी हासिल करने के बाद अब स्वयं भी ख़ुफ़िया तरीके से तन्मय के अपने घर आने जाने के सिलसिले कि तस्दीक करने लगा वह जान बुझ कर चौकी से निकल जाता और अपने घर के आस पास अपने ही घर कि निगरानी करता।समरेंद्र ने प्रतिदिन देखा कि तन्मय उसके घर आता है और रिया से रोज रात एक दो बजे तक बात करता है समरेंद्र चाहता था कि तन्मय और रिया जब भी आपत्ति जनक स्थिती में हो तो उनको वह रंगे हाथों पकड़े मगर रिया और तन्मय का प्यार ईश्वर का विधान था जिसमे वासना का क़ोई स्थान नहीं था फिर भी समरेंद्र को तन्मय और रिया का मिलना नागवार लगता था एक तो पुलिस में कार्य करने से शक सुबहा उसके जीवन  का अभिन्न हिस्सा बन गया था मन ही मन उसने दृढ़ निश्चय कर् लिया तन्मय को रिया कि जिंदगी से हटा कर दम लेगा  अंतिम दिन जब तन्मय रिया से मिलकर जाने लगा उसने कहा अब हम मिलने नहीं आएंगे जन्म जन्मान्तर तुम्हारे आने कि प्रतीक्षा में रहेंगे ख़ुफ़िया निगरानी कर रहे समरेंद्र ने तन्मय कि बात सूनी ।तन्मय के जाने के आधे घंटे बाद वह घर में गया और सो गया सुबह उठा तो वह काफी गंभीर और प्रतिशोधात्मक लग रहा था रिया ने माहौल को हल्का करने के लिये मज़ाकिया अंदाज़ में कहा क्या किसी खतरनाक मुजरिम से पाला पड़ा था जो आप इतने गंभीर गुमसुम है समरेंद्र कुछ बिना बोले तैयार होकर चला गया रिया का मन किसी अनहोनी के डर से घबराने लगा शाम हुई रोज कि भाँती तन्मय समरेंद्र से मिलने पुलिस चौकी आया उस वक्त चौकी में सिर्फ समरेंद्र था उसने अपनी योजना के अनुसार सभी मातहतों को बाहर डियूटी पर भेज दिया था तन्मय दोस्त कि दोस्ती के गुरुर में था उसे जरा भी इल्म नहीं था कि उसका पुलिस दोस्त उसके लिये साक्षात् काल का रूप धारण कर चुका है तन्मय के पहुचते ही समरेंद्र ने सवाल किया तुम देर रात मेरे घर मेरी पत्नी से बात करने क्यों जाते हो क्या कोइ दोस्त अपने दोस्त कि गैरहाजिरी में उसके घर रात दो तीन बजे तक उसकी पत्नी से अकेले में बात करता है यह  तुम्हारे साथ मैं करूँ तो कैसा लगेगा तन्मय ने समरेंद्र को समझने कि बहुत कोशिश कि उसने बताया कि रिया उसके साथ पढ़ी है मगर समरेंद्र ने कहा दोस्त पुलिस वाले कि दोस्ती कि धार तुमने देखी है अब उसके दुश्मनी कि मार झेलो इतना कहते उसने कहते उसने अपने सर्विस रिवाल्वर निकली और सारी गोलियां तन्मय के कनपटी सीने पेट में इस विश्वाश से उतार दी कि वह किसी हाल में जीवित ना बचे तन्मय जमीन पर गिरा तड़फड़ा रहा था समरेंद्र ने तुरंत ऑटो वाले को जिसे उसने पहले से बोल रखा था को बुलाया और तन्मय को उसमे अर्ध मृत्य अवस्था में लादते हुये कहा इसे सरकारी अस्पताल ले जाओ पुलिस चौकी के पास रहने वालों ने इस घटना को देखा उनमे से एक नौजवान चौकी के सामने तन्मय कि नृशंस हत्या पुलिस द्वारा किये जाने पर जनपद निवासियो को जोरदार ललकारा अब जनता का हुजूम ईकठ्ठा हो चुका था मौके कि नज़ाकत देख समरेंद्र फरार हो गया जनता के हुजूम ने जनपद के थाने पुलिस चौकियों को फूक डाला जनता कि मांग थी खून का बदला खून मगर समरेंद्र का कही पता नहीं था।जब घटना कि जानकारी रिया को मिली तो वह स्वयं मृत सामान हो गयी उसे सूझ ही नहीं रहा था कि वह क्या करे ।जनपद की जनता उद्वेलित आंदोलित थी करोड़ो रुपये कि सरकारी सम्पति जनता के आक्रोश के भेट चढ़ गए सरकार द्वारा जनपद में अनिश्चित कालीन कर्फ्यू लगा दिया प्रशासनिक अमले का स्थानातरण कर दिया और नयी प्रशासनिक प्रणाली स्थापित की गयी चुकी इस पूरे घटना में रिया का दोष नहीं था अतः उसे प्रशासन ने  चोरी छिपे जनता के आक्रोश से बचते बचाते उसके घर भेज दिया घटना के लगभग पंद्रह दिनों बाद समरेंद्र ने न्ययालय में आत्म समर्पण कर दिया ।शहर का माहौल समरेंद्र के आत्म समर्पण के बाद शांत होने लगा ।यह सुचना जब महेश सिंह और मिलिंद को मिली तो महेश सिंह आनन फानन भारत लौट आये और अपनी बेटी रिया को अपने घर वापस ले आये रिया का सब कुछ लुट चूका था पति अपराधी जेल में था और प्रेमी जन्म जन्म के इंतज़ार के लिये मर चुका था रिया एक स्कूल टीचर हो अपने इस जीवन का निर्वहन करती अगले जीवन में तन्मय के प्यार के इंतज़ार में जिए जा रही थी पिता महेश सिंह उसकी बेदना को मूक बनकर देखते पश्चाताप के आंसू बहाते सोचते काश वे रिया कि बात मान उसकी शादी तन्मय से किये होते मगर पश्चाताप का ना तो कोई फायदा था ना ही प्राश्चित ।

कहानीकार--नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...