नूतन लाल साहू

मैं बीमार हूं

मेरा व्याकुल मन बहलाने वाले
अब वे मेरे मन की गान कहां है
कोई शारीरिक रूप से तो
कोई मानसिक रूप से
कहता फिरता है,मैं बीमार हूं
मैने ही खेल किया जीवन से
पर मैं उसको देख न पाया
मिलता था,जिससे बेमोल सुख
मैंने ही उससे फेरा मुख
मैं खुद खरीद बैठा पीड़ा को
और कह रहा हूं, मैं बीमार हूं
बात करते हुए, सो गया इंसान
स्वप्न में खो गया है इंसान
पूर्ण कर लें,वह कहानी
जो शुरू की थी सुनानी
था वह अवसर, एक दिन
जब बुढ़ापे में भी करते थे मेहनत
मैने ही खेल किया जीवन से
और कह रहा हूं, मैं बीमार हूं
हो जाय न पथ में रात कही
बीत चली संध्या की बेला
कभी इधर उड़,कभी उधर उड़
ऐसी आपाधापी न कर
इंसान चला जा रहा है
अज्ञात दिशा की ओर
और कहता फिरता है, मैं बीमार हूं
इंसान के भाग्य निर्णायक
है तेरे अंदर ही
प्रकृति से उलझने की कोशिश न कर
क्योंकि तू इस जग का
मालिक नहीं किरायेदार है
तूने ही खेल किया जीवन से
और कहता फिरता है, मैं बीमार हूं

नूतन लाल साहू

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