डाॅ० निधि त्रिपाठी मिश्रा

*सँभल जरा* 

प्रचण्ड अट्टहास आज, 
कर रहा है काल बाज, 
क्या घडी़ प्रलय की है,
सँभल जरा। 

सहम सहम हृदय डरे, 
दृग में अश्रु हैं भरे ,
स्पन्द गति थम रही, 
सँभल जरा। 

मृत्यु का है कृत्य, 
या कि पाप का हुआ उदय, 
कर्म गति टले नहीं, 
सँभल जरा। 

धधक -धधक चिता जले, 
मौत संग में चले,
स्तब्ध शब्द हैं सभी,
सँभल जरा।

विष की बेलियाँ बने, 
गरल सुधा नहीं बने, 
वेदना ये कह रही, 
सँभल जरा। 

सिमट गये हैं लोग सब, 
सिसक रहे हैं साज सब, 
स्वयं से युद्ध तय है अब, 
सँभल जरा। 

कर भरोसा खुद पे आज,
 हौसले पे होगा नाज, 
आत्मशक्ति को जुटा, 
सँभल जरा।

स्वरचित- 
डाॅ०निधि त्रिपाठी मिश्रा, 
अकबरपुर ,अम्बेडकरनगर ।
( *सर्वाधिकार सुरक्षित)*

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