नूतन लाल साहू

पहली बरसात

जीवन एक कहानी है
कभी हंसाती है कभी रुलाती है
पर आज मैं बहुत खुश हूं
आहिस्ता आहिस्ता
हो रही है पहली बरसात
धूप में तपते
पसीने से तमतमाया चेहरा
काला सा पड़ गया था
बहुत ही अखरता था
रात में करवट बदलना
आने दो
मौसम की बहारों को
सुनहरें मधुमास को
छलक पड़े है, खुशियों की आंसू
आहिस्ता आहिस्ता
हो रही है पहली बरसात
हरी कोंपले फूटेंगी
पंछी भी डोलेंगे
उत्सवों के गीत गाए जायेंगे
आसमां के आंगन में
उमड़ घुमड़ मेघों संग
दामिनी दमक उठी है
बदरी भी गरज रही है
देखते ही देखते
झूम रहा है सबका मन
आहिस्ता आहिस्ता
हो रही है पहली बरसात
आ नीचे चंचल बूंदों संग
मानो भू से मिलना चाह रही है
आतुर सी लग रही है
भू की प्यास मिटाने को
छल छल छल छल झर झर झर झर
कभी जोरो से बरसती
शीतल जल से सहला रही है
आहिस्ता आहिस्ता
हो रही है पहली बरसात

नूतन लाल साहू

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