जयप्रकाश अग्रवाल

शीर्षक:    कान्हा करे श्रृंगार 


श्रृंगार करे राधा का कान्हा , सखियाँ देखें सारी ।
मोहन का जादू चढ़ बोले, राधा लगती प्यारी ।

सुरभित जल से पाँव पखारे, लगायी लाली, लगते प्यारे ।
पीताम्बर से पोंछे हरि पग- इन पाँवों में हरि सब हारे ।
चुटकी, पायल और पैंजनी, स्वयं पहनाये मुरारी ।
श्रृंगार करे राधा का कान्हा, राधा लगती प्यारी ।

हाथों पर मेहँदी लाल, बना अधरों से बिंदिया भाल ।
हरी-लाल-पीली-नीली, चूड़ी पहनाते नन्दलाल ।
मणि-मुक्ता-माणिक का हार, लाया साथ बिहारी ।
श्रृंगार करे राधा का कान्हा, राधा लगती प्यारी ।

सजा हाथों में हथफूल, कानों कुण्डल औ नथफूल ।
गजरा, कजरा लगा दिये-  फिर भी कान्हा गया भूल ।
काली बिंदी लगा राधा को, मोहन जाये वारी ।
श्रृंगार करे राधा का कान्हा, राधा लगती प्यारी ।

कैसा रूप सजाये हरि, राधा को रिझाये हरि ।
सखियाँ करतीं कानाफूसी, दर्पण क्यों दिखाये हरि ।
दर्पण में दीखे राधा को, मुरलीधर बनवारी,
मोहन का जादू चढ़ बोले, राधा लगती प्यारी ।

(स्वरचित)


जयप्रकाश अग्रवाल,  काठमांडू,  नेपाल ।
मोबाइल +9779840006847
Mail jpagnp@gmail.com

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