शीर्षक: कान्हा करे श्रृंगार
श्रृंगार करे राधा का कान्हा , सखियाँ देखें सारी ।
मोहन का जादू चढ़ बोले, राधा लगती प्यारी ।
सुरभित जल से पाँव पखारे, लगायी लाली, लगते प्यारे ।
पीताम्बर से पोंछे हरि पग- इन पाँवों में हरि सब हारे ।
चुटकी, पायल और पैंजनी, स्वयं पहनाये मुरारी ।
श्रृंगार करे राधा का कान्हा, राधा लगती प्यारी ।
हाथों पर मेहँदी लाल, बना अधरों से बिंदिया भाल ।
हरी-लाल-पीली-नीली, चूड़ी पहनाते नन्दलाल ।
मणि-मुक्ता-माणिक का हार, लाया साथ बिहारी ।
श्रृंगार करे राधा का कान्हा, राधा लगती प्यारी ।
सजा हाथों में हथफूल, कानों कुण्डल औ नथफूल ।
गजरा, कजरा लगा दिये- फिर भी कान्हा गया भूल ।
काली बिंदी लगा राधा को, मोहन जाये वारी ।
श्रृंगार करे राधा का कान्हा, राधा लगती प्यारी ।
कैसा रूप सजाये हरि, राधा को रिझाये हरि ।
सखियाँ करतीं कानाफूसी, दर्पण क्यों दिखाये हरि ।
दर्पण में दीखे राधा को, मुरलीधर बनवारी,
मोहन का जादू चढ़ बोले, राधा लगती प्यारी ।
(स्वरचित)
जयप्रकाश अग्रवाल, काठमांडू, नेपाल ।
मोबाइल +9779840006847
Mail jpagnp@gmail.com
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