ममता रानी सिन्हा

🌹"हिन्द चरित्र निर्माण"🌹

हे भारत की पुत्रियों अब तुम जागो,
जय हिन्द का चरित्र निर्माण करो।
स्वंय की आत्मशक्ति को जागृत करो,
और तुम लक्ष्मीबाई का आह्वान करो,
हे भारत की पुत्रियों अब तुम जागो,
जय हिन्द का चरित्र निर्माण करो।

इस जीवन युद्ध के चक्रव्यूह में,
यदि सुयशमार्ग तुम्हे न मिल पाए,
गर खड़ा दुस्सासन चीरहरण को,
और श्रीकृष्ण न उपस्थिति दर्शाएं,
तो अंत करो वध करो निष्प्राण करो,
स्वंय की आत्मशक्ति को जागृत करो,
और तुम लक्ष्मीबाई का आह्वान करो,

हे भारत की पुत्रियों अब तुम जागो,
जय हिन्द का चरित्र निर्माण करो।

छैल छबीली मनु से बदल अब तुम,
स्वनिर्णीता मणिकर्णिका बन जाओ,
हे सुलक्ष्मी जया उठो स्वंय के भीतर,
अब तुम झाँसी की रानी को जगाओ,
राष्ट्रध्वज लेकर महादेव जयगाण करो,
स्वंय की आत्मशक्ति को जागृत करो,
और तुम लक्ष्मीबाई का आह्वान करो,

हे भारत की पुत्रियों अब तुम जागो,
जय हिन्द का चरित्र निर्माण करो।

विश्व की सर्वश्रेष्ठ प्राचीन सभ्यता,
सम्पूर्ण वसुंधरा की ज्ञान प्रणेता,
सनातन संस्कृति का तुम ध्यान धरो,
अदम्य शौर्य प्रतिमूर्ति वीरबाला का,
हे रणविजया तुम अब प्रमाण करो,
स्वंय की आत्मशक्ति को जागृत करो,
और तुम लक्ष्मीबाई का आह्वान करो,

हे भारत की पुत्रियों अब तुम जागो,
जय हिन्द का चरित्र निर्माण करो।

तुम डरो नहीं अधर्मियों से अब,
तुम हारो नहीं दुष्कर्मियों से अब,
उठो और तलवारों से संहार करो,
तुम साक्षात कालिका कालरात्रि हो,
शत्रु भृकुटि पर घातक प्रहार करो,
स्वंय की आत्मशक्ति को जागृत करो,
और तुम लक्ष्मीबाई का आह्वान करो,

हे भारत की पुत्रियों अब तुम जागो,
जय हिन्द का चरित्र निर्माण करो।

तुम अबला नहीं तुम दुर्बला नहीं,
अब प्रत्यक्ष रणचण्डिनी बन जाओ,
अग्नि ज्वाला बन के गगन से बरसो,
शत्रु दुस्साहस खण्डिनी बन जाओ,
हो सौराष्ट्र हिन्दबाला अभिमान करो,
स्वंय की आत्मशक्ति को जागृत करो,
और तुम लक्ष्मीबाई का आह्वान करो,

हे भारत की पुत्रियों अब तुम जागो,
जय हिन्द का चरित्र निर्माण करो।

समाज के घाती ह्यूरोज डलहौजी,
नीच सिंधियाओं की पहचान करो,
सभ्यता संस्कृति के दीमक पकड़,
आस्तीन में छुपे सांपों को कुचल,
अंतगति को आश्रय शमशान करो,
स्वंय की आत्मशक्ति को जागृत करो,
और तुम लक्ष्मीबाई का आह्वान करो,

हे भारत की पुत्रियों अब तुम जागो,
जय हिन्द का चरित्र निर्माण करो।
🙏🙏
ममता रानी सिन्हा
तोपा, रामगढ़ (झारखण्ड, भारत)
(स्वरचित मौलिक रचना)

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