डा. नीलम

*बस्ती-बस्ती बात*

नैनों की नैनों से जबसे बात हुई 
बस्ती-बस्ती बात सारी फैल गई

दो चार बातें ही तो अभी प्यार की हुईं
ना जाने कैसे अफसाना बन फैल गई

मिले थे हम तो निर्जन एकांत
में कहीं
जाने कैसे भनक लोगों को लग गई

पानी पे नाम उसका लिख -लिख मिटाया किये
फिर भी उसके नाम की खबर सबको हो गई

दो-चार कदम अभी साथ भी न चल सके
दुनिया वालों की काली नज़र
लग गई।



      डा. नीलम

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...