जया मोहन

कागज़ के फूल
बहार आने पर चमन में फूल खिलते है
कलियों को देख भवरे मचलते है
गमगमा उठती है सारी फ़िज़ा उनकी महक से
दिन मधुमास से सुहाने लगते है
कुछ समय का ही जुवन पाते हैं
शाम तक रंग गन्ध बिखेर के
कुम्हलाते है
कागज़ के फूल कभी नही मुरझाते है
प्रिय की यादो की सुगंध फैलाते हैं
उनके पास न होने पर भी उनका अहसास कराते है
कभी हँसाते कभी रुलाते है
आज बरसो बाद इन कागज़ के फूलो ने मुझे अतीत में पहुँचा दिया
उस मासूम का चेहरा आँखो के आगे  ला दिया
उपहारों से सबने मुझे लाद दिया था
मौन कोने में वो नन्हा खड़ा था
इशारे से मैंने उसे पास बुलाया
छुपाए हुए उपहार दिखाने को उकसाया
शर्मा कर उसने खुद बनाये कागज़ के फूलो का गुच्छा मुझे थमाया
मैं आपके लिए चाह कर भी कुछ न ला सका
सीने से चिपकाते हुए मैने कहा
तेरा तोहफा तो अनमोल है
ये तो हमेशा मेरे पास रह प्यार की सुगंध फैलाएंगे
बाकी तो सूख कर बिखर जायेगे
ये सदा शोख रंगत में नज़र आयेंगे
गुज़रे पलो की याद दिलाएंगे
फूल तो मेरे पास रह गए
नन्हे दूत को ईश्वर ले गये
आज भी इनमें उसका चेहरा दिखता है
जो दिल मे शूल चुभोता है
तुम्हे तो मौत से न बचा सकी
मुझे इन फूलों में तू ही तू दिखता है
ये न कभी सूखेगे न मुर्झायेंगे
तेरी यादों की खुशबू फैलायेंगे।

स्वरचित
जया मोहन
प्रयागराज

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