पितृ - छाया में
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पिता , पिता ही नहीं , पिता बनकर पिता - रूप में
पिता एक बहुत ही महान आत्मा होती है
कर्मठता यदि उसकी कुछ कर नहीं पाती है , तो
अन्तरात्मा उसकी सिसक - सिसककर रोती है ।
पिता परिवार का मुखिया , पालनकर्ता है
इसलिए पिता भरसक यह कोशिश करता है कि
पेट अपना चाहे भरे , न भरे , पर यह सत्य है ,
वह अपने बच्चों के जैसे भी हो , पूरे पेट भरता है ।
पिता चाहे मज़दूर हो किसी फ़ैक्टरी का
दफ़्तर चाहे घर से कितना भी दूर हो
भरसक समय - पालन का वह ध्यान रखता है ,
सोचता हे , कोई पिता न कभी भी , मजबूर हो ।
कठिन परिश्रम करता है , जीवन में पिता
परिवार की ज़रूरतें समझता है , एक पिता
साहब का हुक्म बजाने में , कोई कसर नहीं छोड़ता ,
ऊँचे सपने सदा ही पालता है , एक पिता ।
पिता छत्रछाया है , अपने पूरे परिवार की
परवाह नहीं करता वह , किसी भी दीवार की
नियम भंग लेकिन , वह कभी होने नहीं देता ,
उसे परवाह होती है सदा , पिता के किरदार की ।
पिता बनकर उसे , पिता के कर्तव्य याद आते हैं
तब अपने पिता के नियम , उसे बहुत सुहाते हैं
तब बच्चों पर लगाये , सख्ती के बंधन वह तोड़ देता है ,
बच्चे पिता के साथ तब , निश्चिंत मौज़ मनाते हैं ।
पिता थोड़े कठोर , थोड़े नरम - दिल भी होते हैं
पिता , पिता होने का तब , दम भी तो भरते हैं
पिता बच्चों से , अनुशासन का पालन करवाता है ,
बच्चे भोले मासूम , पितृ - छाया में राज करते हैं ।
पितृ - छाया , घने वट वृक्ष की भी छाया है
फ़रमाते हैं जो बच्चे , पिता ने वही हुक्म बजाया है
' गलती कोई करना नहीं ' , के आधार पर ही तो ,
बच्चों ने पितृ - छाया में , स्वतंत्र जीवन पाया है ।
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रवि रश्मि 'अनुभूति '
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