रवि रश्मि अनुभूति

   पितृ - छाया में 
***************
पिता , पिता ही नहीं , पिता बनकर  पिता - रूप में 
पिता एक बहुत ही महान आत्मा होती है 
कर्मठता यदि उसकी कुछ कर नहीं पाती है , तो 
अन्तरात्मा उसकी सिसक - सिसककर रोती है ।
पिता परिवार का मुखिया , पालनकर्ता है 
इसलिए पिता भरसक यह कोशिश करता है कि 
पेट अपना चाहे भरे , न भरे , पर यह सत्य है , 
वह अपने बच्चों के जैसे भी हो , पूरे पेट भरता है ।
पिता चाहे मज़दूर हो किसी फ़ैक्टरी का 
दफ़्तर चाहे घर से कितना भी दूर हो 
भरसक समय - पालन का वह ध्यान रखता है ,
सोचता हे , कोई पिता न कभी भी , मजबूर हो ।
कठिन परिश्रम करता है , जीवन में पिता 
परिवार की ज़रूरतें समझता है , एक पिता 
साहब का हुक्म बजाने में , कोई कसर नहीं छोड़ता ,
ऊँचे सपने सदा ही पालता है , एक पिता ।
पिता छत्रछाया है , अपने पूरे परिवार की 
परवाह नहीं करता वह , किसी भी दीवार की 
नियम भंग लेकिन , वह  कभी होने नहीं देता , 
उसे परवाह होती है सदा , पिता के किरदार की ।
पिता बनकर उसे , पिता के कर्तव्य याद आते हैं 
तब अपने पिता के नियम , उसे बहुत सुहाते हैं 
तब बच्चों पर लगाये , सख्ती के बंधन वह  तोड़ देता है , 
बच्चे पिता के साथ तब , निश्चिंत मौज़ मनाते हैं ।
पिता थोड़े कठोर , थोड़े नरम - दिल भी होते हैं 
पिता , पिता होने का तब , दम भी तो भरते हैं 
पिता बच्चों से , अनुशासन का पालन करवाता है ,
बच्चे भोले मासूम , पितृ - छाया में राज करते हैं ।
पितृ - छाया , घने वट वृक्ष की भी छाया है 
फ़रमाते हैं जो बच्चे , पिता ने वही हुक्म बजाया है 
' गलती कोई करना नहीं ' , के आधार पर ही तो , 
बच्चों ने पितृ - छाया में , स्वतंत्र जीवन पाया है ।
                &&&&&&&

रवि रश्मि 'अनुभूति ' 
              

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...