*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌹🌹 *संस्कार*🌹🌹
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◆ यही कहे संस्कार सब , होता कर्म कृतार्थ।
सत्य सनातन धर्म में, षोडस हैं धर्मार्थ।
सदा सहेजे नीति को, नैतिक रहे विधान।
धर्म कर्म के ज्ञान को, माने जीवन पार्थ।।
◆ जीवों पर होती दया, संस्कारी के द्वार।
लालच ईर्ष्या द्वेष से , क्षति होती है प्यार।
पाना चाहे गर मनुज, नैतिक जीवन मूल।
धरे सतत् जब धैर्य को , प्राप्ति जगत आधार।।
◆ यह संस्कार मिला जिसे , वह पाता सम्मान।
सदा बड़ों को मान दे, नैसर्गिक हो ज्ञान।
अडिग रहे विश्वास से, उच्च विचारों साथ,
कर्म बने पहचान जब, मानव वही महान।।
◆ नव पीढ़ी जाने नहीं, यह अपना संस्कार।
देती महता स्वयं को, निज का ही विस्तार।
प्राप्ति बनाएँ लक्ष्य है, दया दान को भूल,
शिक्षा ऐसी हो अभी, सीखें मधु उपकार।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
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