निशा अतुल्य

मुक्त काव्य प्रस्तुति
बदलती पीढ़ी

हर पीढ़ी का अंतराल
कुछ कहता,कुछ सुनता है
हर पीढ़ी का भी एक 
अपना गौरव होता है ।

समय बदलता,रूप बदलता
और बदलती परिभाषा है 
जीवन मरण के चक्कर से
कोई नहीं बस छूटता है ।

कल तक तो माँ जवान थी
आज तुम पर आश्रित है
जब तुम आये इस दुनियां में
तुम भी उस पर आश्रित थे ।

तब पाला था उसने स्नेह से
नहीं कोई तिरस्कार किया
अब तुम पर क्यों बोझ बनी माँ
क्यों तुमने मन से बाहर किया ।

बैठी किसकी राह निहारे 
मूक बधिर सी लगती है 
कहना चाहे बात किसी से
पर घर की बात न कहती है ।

सोचो और विचार करो तुम
क्या अगली पीढ़ी को दोगे
फल वैसा ही पाओगे फिर
जैसा कर के जाओगे ।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

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