नूतन लाल साहू

कागज के फूल

बड़े भाग्य प्रभु जी की दया से
पाया मानुष तन अनमोल
जब कौड़ी साथ न जानी है
तब छल से द्रव्य कमाना क्या
मुर्गे की बोली से सीखो
प्रातः काल प्रभु जी का गुण गाना
स्वप्न को स्वप्न समझो
ये श्रुति ने समझाया है
फूल से पूछो तुम
उस पर कैसे छायी है बहार
गुरु गोविंद के बगैर
भवसागर पार,संभव ही नहीं है
जैसे खुशबू आ नही सकता
कागज के फूलों से
तू बढ़ता ही जा रहा है
अपने लक्ष्य पर,किसके सहारे
आखिरी मंजिल नहीं होती
कही भी दृष्टिगोचर
अच्छा है,निरंतर आगे बढ़ना
पर लक्ष्य पर,पहुंचना है अनिश्चित
गुरु गोविंद से नाता जोड़ लें
बेड़ा पार लगाने वाला
कोई और नहीं है
हर खुशी मिल जायेगी तुम्हें
प्रभु जी के कदमों में
झुक जाने के बाद
सांसारिक भय भी तुझे नहीं सताएगा
क्योंकि उस तरफ के लोक से भी
जुड़ चुका है, एक नाता
मृत्यु पथ पर भी आगे बढ़ेगा तू
मोद से गुनगुनाता
गुरु गोविंद के बगैर
भवसागर पार, संभव ही नहीं है
जैसे खुशबू आ नही सकता
कागज के फूलों से

नूतन लाल साहू

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...