अन्न
7.6.2021
जीवन का संघर्ष सदा है ,
कभी बुझा और कभी हरा है।
पेट पीठ से बांध प्रभु ने,
कर्मपथ प्रशस्त किया है ।
पेट अगर न होता पीठ संग,
क्षुधा भी नही होती जग में ।
कोई करता कर्म नहीं यहाँ,
अनाज की जरूरत कहाँ होती ।
सोच समझ मानव को बनाया,
ईश्वर का है विधान बड़ा ।
क्या रहा उसके मन में समाया,
कौन भला ये जान सका ।
अब अनाज ही जीवन सबका,
कृषक अनाज उपजाता है ।
हो जाती तैयार फसल जब,
मंडी बेचने आता है ।
भागमभाग जीवन की ,
अनाज पर जा कर खत्म हुई।
जीवन पूरा अनाज पर निर्भर,
हमको ये समझाता है ।
करो सम्मान सदा तुम अन्न का,
शरीर इससे ही अमृत रस पाता है।
जीवन तब तक चलता रहता,
जब तक अन्न चलाता है ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
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