मुझे चाहने लगे हैं!
क्या हुआ है उनको मुझे चाहने लगे हैं,
मयकशी बदन ये मेरा देखने लगे हैं।
जैसे रस भरे फलों को, कोई चाहता परिंदा,
जैसे रोशनी को तरसे, कोई नेत्र का हो अंधा।
मेरी हुश्न की फसल को, वो सींचने लगे हैं।
क्या हुआ है उनको, मुझे चाहने लगे हैं,
मयकशी बदन ये, मेरा देखने लगे हैं।
कोई पी रहा हो मयकश,किसी मयकदे में जाकर,
वो लुफ्त ले रहे हैं, मेरी आँख से ही पीकर।
मेरे अनछुए बदन में, रस घोलने लगे हैं,
क्या हुआ है उनको मुझे चाहने लगे हैं,
मयकशी बदन ये, मेरा देखने लगे हैं।
मेरी झील-सी ये आँखें, मेरा फूल सा बदन ये,
कहीं भूल से न बिखरे, मेरे प्यार का चमन ये।
मेरे अधखुले अंगों से वो अब खेलने लगे हैं,
क्या हुआ है उनको, मुझे चाहने लगे हैं,
मयकशी बदन ये, मेरा देखने लगे हैं।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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