*भक्ति रस रोला छन्द*
कृष्णा माखनचोर,सुदामा से यह बोला।
आज चले हम मित्र,माँगने लेकर झोला।।
आटा -चावल- दाल,मिले मैया को देते।
भोजन का आनंद,मस्त होकर हम लेते।।1
मीरा का गोपाल,चराते जंगल गैया।
मीरा की ही भक्ति,सुनो मेरी ही मैया।
वीणा - सुर में ताल,भजन में कृष्णा गावे।
रहकर भूखी-तृषा ,मुझे ही दही खिलावें।।2
मेरे प्रभु गोपाल,धरा पर फिर से आओ।
भूखी प्यासी गाय,हरा तुम चारा लाओ।
गो है आज अनाथ ,चराने फिर से आओ।
एक बार प्रभु रूप, ग्वाल फिर से दिखलाओ।।3
मीरा कहती नाथ,मलाई माखन खाओ।
काठी मथनी डोर, खींचने तो घर आओ।
मैं देखूं गोपाल,तुझे ही माखन खाते।
छुपके- छुपके द्वार,गाय को घास खिलाते।।4
जग में सूरज चाँद, धरा जगदीश बनाए।
धरती पर ही जीव,यही प्रभु गिरधर लाए।।
कण -कण में ही ईश,बसे रचते है माया।
नैया है मझधार ,उबारो दुख में काया।।5
कहता है यह कौन,नहीं प्रभु कृष्णा आते।
मीरा जैसा गान,जरा सुर मय तो गाते।
कहता है यह कौन,नहीं प्रभु तो कुछ खाते।
शबरी के ही बेर,प्रेम से मनन खिलाते।।6
सुनकर आए कृष्ण, द्रोपदी दिल से बोली।
भरी सभा के बीच ,आज फैलाई झोली।
प्रभु साड़ी को खींच, रहा है चीर बढ़ाओ।
हे प्रभु !दीना नाथ, आज मम लाज बचाओ।।7
आओ मेरे नाथ,द्वारकाधीश को पुकारी
सुबह -शाम यह कृष्ण,बाल बलराम दुलारी।
करती मीरा भजन,हर्ष से माखन देती।
वो माखन का भोग, प्रसाद स्वयं भी लेती।।8
*✍️प्रवीण शर्मा ताल*
*@स्वरचित मौलिक रचना*
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