घर अपना ऐसा हो-
घर वो नहीं जो एक पत्थर से हो
घर वो हो जिस की दीवार दिमाग के तरह इस स्थिर। दिल की तरह भावनात्मक ,
जिस्म की तरह स्वस्थ और सजल ,
रिश्तो की तरह सजा हो
जिसमें परिंदों का बसेरा हो।
अतिथियों का आना जाना हो,
जहाॅ मान और सम्मान हो।
प्रेम का खजाना हो,
अपने धर्म के प्रति विश्वास हो।
सभी व्यक्ति निष्ठावान और एक दूसरे के प्रति समर्पित हो,
जिसमें दया और प्रेम का भाव हो।
ऐसे घर को घर एक मंदिर कहते हैं ,
तभी तो सभी को अपना घर अपना लगता हैं।
कुमकुम सिंह
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