सौरभ प्रभात

*गीतिका (हिन्दी ग़ज़ल)*

*मापनी (बह्र)-*
*221 1222 221 1222*
*समांत (काफ़िया) - आता*
*पदांत (रदीफ़) - है*

विह्वल मन आँगन ये सुन गीत सुनाता है।
जब प्रीति करे धोखा तब नीर बहाता है।।

कहती निशदिन आहें वो पीर नहीं देगी।
मुस्कान रुलाये जब हिय को समझाता है।।

वो कुंदन सा चमके इस पावक में तपकर।
पर याद वही आये जो राग भुलाता है।।

चंचल दृग देखे हैं नित राह उसी की अब।
जो आज थकी साँसे कल पर बहलाता है।।

निस्तब्ध हुई धड़कन जो नैन पड़े उसपे।
वो दूर खड़ा अब तो उम्मीद चुराता है।।

ऐ सौरभ क्यों उसको तू याद करे अब भी? 
वो साथ नया पाकर देखो इठलाता है।।

✍🏻©️
सौरभ प्रभात 
मुजफ्फरपुर, बिहार

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