नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

-----थाने वाला गाँव----

विल्लोर गांव का एकात्म स्वरूप बदल चुका था गांव छोटे छोटे टोलो में जातिगत आधार में बंट एक अविकसित कस्बाई रूप ले चुका था जहाँ हर व्यक्ति गांव के एकात्म स्वरूप  के सौहार्द को याद कर समय को कोसता और बादलते समय की दुहाई देकर वर्तमान परिस्थितियों को स्वीकार कर लेता गांव की हालत यह हो गयी थी कि गांव के प्रत्येक व्यक्ति की सोच सिर्फ स्वयं एव स्वयं के परिवार और जाति तक सीमित रह गयी थी स्वार्थ के अतिरिक्त कोई मूल्य शेष नही रह गया था ।गांव के एक टोले के लोग दूसरे टोले के लोंगो को फूटी आंख नही सुहाते पूरे गांव का वातावरण विषाक्त के अहंकार में डूब चुका था कोई किसी त्यौहार मरनी करनी पर एक दूसरे टोले वाले नही आते जाते बात बात पर गांव में कलह क्लेश झड़प मार पीट होती रहती दरवाजे के सहन और पानी निकासी नाली के झगड़े खेतो के मेढ़ डाढ़ के झगड़े पंचायत मारपीट विल्लोर गांव की नई संस्कृति बन चुकी थी कुल पांच छः सौ घरों पंद्रह टोले के गांव विल्लोर में तीन सौ पचास विवाद के मुकदमे बिभिन्न न्यायालयों में विचाराधीन हो गए गांव के भोले भाले लोंगो की मेहनत की कमाई वकील कचहरी में जाने लगी गांव में कच्ची शराब का व्यवसाय जोरो पर खुल्लम खुल्ला चलने से गांव की अधितम आबादी शराब की आदि हो गयी कमाई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा दारू में जाने लगा दारू के नशे में प्रति दिन किसी न किसी मोहल्ले में गाली गलौज मार पीट आम बात हो चुकी थी नई पीढ़ी अधिकतर नशे की आदि हो  चुकी थी जिसकी वजह से गांव के किसी न किसी घर मे माँ बाप और संतानो के बीच रुपये पैसे के लिये कलह होना आम बात थी जो थोड़े बहुत समझदार लोग बचे थे उन्होंने भविष्य को देखते हुये अपनी संतानों को पढ़ने के लिये दूर शहरों में भेज दिवा था हर टोले में दो चार नौजवान नेता बन कर उभर चुके थे जिन्हें रूरल बैरिस्टर के शानदार खिताब से नवाजा जाता जो या तो गलत रास्तों पर निकल चुके थे या यूं कहें कि चोरी छिनैती डकैती बलवा में अपनी रोटी सेकते अपनी शान समझते और ऐसा माहौल बनाते की उनकी पूछ और  दब दबा बनी रहे गांव की युवा पीढ़ी सुबह दस बजे नियमित पास के बाज़ार चली जाती और बाज़ार में हंगामा काटती पूरे बाज़ार में विल्लोर गांव की छवि उदंड और उचक्कों की थी धीरे धीरे गांव की अराजक स्थिति का पता प्रशासन को भी लग चुका था अतः प्रशासन ने विल्लोर गांव में पुलिस थाना खोल दिया अब गांव थाना हो जाने के कारण स्थिति और भी भयावह हो चुकी थी। पंडित महिमा दत्त और लाला ग़ज़पति ने गांव के विषय मे जिस अवधारणा की कल्पना की थी वह साकार होती नजर आ रही थी जैसा कि भारत की परंपरागत शैली थी आपस मे बंदर की तरह लड़ो झगड़ो और तीसरी बिल्ली को मौका दे दो की वह विवाद के निपटारे में न्यायाधीश बने और खुद मालिक बन बैठे भारत की इसी परसम्पागत शैली का फायदा उठाते हुए पहले तो विदेशी आक्रमणकारियो ने यहां की सांस्कृतिक विरासत और धन संपदा को लूटा और अंत मे जाते जाते अंग्रेजी हुकूमत ने भारत को हिंदुस्तान धार्मिक आधार पर बांट कर बना दिया उसी परम्परा संस्कृति संस्करण की पीढ़ी की उपज पंडित महिमा  दत्त और लाला गजपति थे जिनको वर्चस्व की भूख थी जिसे किसी कीमत पर पूरा करना चाहते थे और तरह तरह के खड़यंत्र करते रहते चूंकि गांव की एकात्मकता समाप्त हो चुकी थी गांव जाती गत आधार पर टोलो में बंट चुका था अतः ठाकुर के स्मारक पर एक रुपया प्रतिमाह प्रति परिवार से आना बंद हो चुका था लाला और पंडित के आमदनी का जरिया समाप्त हो चुका था अतः दोनों पहले से ज्यादा आक्रामक और शातिर हो चुके थे।विल्लोर गांव में पहले थानेदार के रूप में नियुक्ति हुई शमशेर खान की आते ही शमशेर बहादुर ने पहला काम किया विल्लोर गांव की सांस्कृतिक और भौगोलिक  एव सामाजिक पृष्ठभूमि का गंभीरता से अध्ययन किया और फिर कमजोर और मजबूत पक्षों की जानकारी हासिल की फिर पूरे विल्लोर गांव के सभी टोलो में अपने मुखबिर तैनात कर दिया और अपने सभी माताहदो को निर्देश दिया कि विल्लोर गांव की हर हरकत पर नज़र रखे ।फिर खान शेर बहादुर ने लाला ग़ज़पति और पंडित महिमा दत्त को बुलाया और बोला देखो पंडित और लाला तुम दोनों ने अपने महरूम दोस्त ठाकुर के साथ मिलकर बहुत गदर काटा है अब तुम लोग अपनी हरकते बंद कर दो वरना अंजाम अच्छा नही होगा पूरे गांव को तो तुमने आपस मे बांट दिया है और कलह का बीजारोपण कर दिया है उसी का परिणाम है कि गांव में जितने घर नही है उतने विवाद न्यायालय में है और आये दिन गांव में नया बखेड़ा खड़ा होता रहता है ध्यान से सुनो अब तक गांव वालों को बेवकूफ बनाकर तुम लोंगो ने अपना उल्लू सीधा किया अब ध्यान से सुनो मुझे जो पगार सरकार देती है वह मेरे बीबी बच्चों के लिये मैं तो जहाँ तैनात रहता हूँ सिर्फ वही के नमक से जिंदगी गुजर बसर करता हूँ दूसरी बात नोआ खाली का गदर तुम लोंगो ने सुना ही होगा अब यदि तुम लोग गांव में जरा भी चालबाजी दिखाओगे तो नोआ खाली की तरह तुम दोनों का सर कलम कर चौराहे पर टांग दूँगा  लाला ग़ज़पति दरोगा शमशेर की बात बड़े ध्यान से सुन रहे थे पंडित महिमा तो पसीने से तर बतर कांप रहे थे लाला ग़ज़पति बोले हुज़ूर आप हाकिम है जो चाहे कर सकते है हम जरा पंडित महिमा को जो बहुत घबड़ा गए है को ठिक करके दो मिनट में आते है फिर लाला ग़ज़पति पंडित महिमा को साथ लेकर थाने परिसर से कुछ दूर लेकर गए और बोले पंडित काहे मरा जात हो सुने नही उ दरोगा का कहत रहा जहाँ रहत है वही के नमक खात है और नोवा खाली का मतलब समझो
पंडित महिमा बोले लाला हम तो बहुते घबड़ा जाइत है हमरे संमझ में तो कुछ नही आता आपे मतलब समझाओ तब लाला ग़ज़पति बोले देखो पंडित दरोगा परले दर्जे का भ्रष्ट और मक्कार है और इसके रहते गाव में शांति कम अशांति ज्यादा फैलेगी अब तक गांव वालों की कमाई का एक हिस्सा कोर्ट कचहरी की दरिद्र शान में खर्च हो रहा था अब एक हिस्सा इस दरोगा को भी चाहिये और यह येन केन प्रकारेण लेगा दूसरी बात यह चलता फिरता नरभक्षी है जो इंसानों को भय दहसत में पिसता रहेगा काहे घबराते हो पंडित महिमा यह दरोगा हम लोंगो की ही बिरादरी के ऊंचा खिलाड़ी है अब चलो उ देखो आंखे फाड़ देख रहा है उसके पास चलते है फिर महिमा और लाला दरोगा शमशेर के पास गए और बोले हाकिम आपका इकबाल बुलंद रहे बताइए हम लोग क्या कर सकते है दरोगा शमशेर बोला आई गई न अक्ल ठिकाने आखिर ऊंट को पहाड़ के नीचे आना ही पड़ता है तुम लोग गांव से मेरे नमक की जोरदार व्यवस्था इंतज़ाम करो चाहे जो करो हमे क्या पण्डित महिमा लाला एक स्वर में बोले हाकिम जैसी आपकी की मर्जी फिर दरोगा समशेर बोला देखो भाई हम दिन रात डियूटी पर  रहित है परिवार त रखी नाही सकित त तुम लोग सोवे खातिर1 मशलन्द गद्दा रजाई की व्यवस्था रखे हर सप्ताह एक दिन अब तो लाला पंडित के पैर से जमीन खिसक गई क्योकि दोनों कुछ भी कर ले लेकिन चरित्र हीनता ना तो स्वीकार करते ना करते मगर मरता क्या न करता दोनों ने कहा हाकिम की जैसी मर्जी दरोगा शमशेर ने कहा अब जाओ तुम दोनों और मेरी बातों पर गौर फार्माओ।
 पंडित महिमा और लाला गजपति थाने परिसर से बाहर निकले और गांव की तरफ चलने लगे खामोशी तोड़ते हुए लाला गजपति बोले देखा पंडित ई दरोगा करोङो नौटंकीबाज़ मरे हुईए तब पैदा हुआ होई पहले कैसी हेकड़ी बघरत रहा फिर मतलब पर आवा सुनो पंडित ई शोमारू प्रधान के हमारे खिलाफ खड़ा करके कोशिश करे सबसे पहले त ई पता करेका है कि कही हम लोगन से पहले इसने शोमारू को तो नही बुलाया था यदि बुलाया था तो का बात किहेस पता करना बहुत जरूरी है काहे की गांव में कुछो करे खातिर हम लोगन के लिये शोमारू तुरुप का इक्का है अगर ऊ बहक गावा तो समझो मह लोग गांव में माटी के माधव बन जाव ए लिये घर पहुँचिके सबसे पहिले हम दोनों समारू के घर चलते है उसकी टोह लेते है बाद में कौनो और काम पंडित महिमा और लाला ग़ज़पति गांव पहुँच के अपने घर ना जाकर सीधे शोमारू प्रधान के घर गए पंडीत और लाला को देखकर शोमारू भौचक्का रह गया   और बोला आप दोनों एक साथ का बात है सब कुशल त है लाला ग़ज़पति बोले हम लोग थाने दरोगा जी से मिलने गए थे लौटते समय सोचा तुम्हारा भी हाल  चाल लेते चले समारू ने फिर सवाल किया थाने काहे कौनो खास बात लाला ग़ज़पति बोले कौनो खास बात नाही है शोमारू दरोगा शमशेर हम लोगन के पुरान जाने वाले है सो मिलन खातिर बुलाये रहेन शोमारू बोला लाला जी ऊ त हमहुके बुलाएंन है लाला ग़ज़पति बोले इमा कौनो खास बात नाही है विल्लोर इतना बड़ा गांव है दारोगा जी नवा नवा आये है तू गांव के प्रधान तोहे त बोलैबे करीहन लेकिन कौनो बात करीहन सिर्फ एताना बताये की तू सिर्फ प्रधान है पढा लिखा नाही हैं सगरो काम पंडित महिमा और लाला ग़ज़पति देखत हन एकरे अलावा कुछ  बोले जीन बोले त तू जाने तोहार काम जाने शोमारू बोला ठिक मालिक लाला ग़ज़पति और पंडित महिमा अपने घर चले गए शोमारू दरोगा के से मिले खातिर जाय वदे तैयार होने लगा। तैयार होकर शोमारू भगवान का नाम लेता थाने पहुंचा सोमारू को देखते ही दारोगा शमशेर खान ने कुटिल चतुराई से बोला आईये प्रधान जी आपने तो आने में बड़ी देर लगा दी कहते तो हमी चले आते समारू भोला भाला आदमी  उसे दारोगा की कुटिलता का हरगिज़ अंदाज़ा नही था वह बड़े ही आदर भाव से बोलः हाकिम देरी के लिये माफी अब हम आपके दरबार मे हाज़िर है का हुकुम है दरोगा शमशेर को समझते देर नही लगी कि प्रधान अव्वल दर्जे का बेवकूफ या निहायत सीधा साधा इंसान है बोला प्रधान जी आपके गांव में झगड़ा फसाद ववाल जरायम पेशा में देशी दारू बनाने के साथ साथ तमाम नाज़ायज़ काम हो रहा है साथ ही साथ गांव के नौजवान आये दिन बाज़ार में बलवा काटते है उनमें से कुछ तो नकब्बबाज़ी ,छिनैती ,डकैती आदि कार्यो में मशगूल है क्या तुमको पता है  शोमारू सीधा साधा गंवार जरूर था मगर हालात की संमझ और परख थी उसको बोला हकीम नई पीढ़ी के नौजवानों के पास कोई काम धाम तो है नही पढ़ लिख सके नही जो पड़ना लिखना चाहता था वह गांव छोड़कर बाहर चला गया और बाहर का ही रह कर रह गया जो नवजवान गांव में है उनके मा बाप के पास इतनी खेती नही की उसकी उपज से परिवार का भरण पोषण कर सके और खेती में भी क्या किसी साल सूखा तो किसी साल बाढ़ खाद बीज के लिये लाइन कभी मिलता तो कभी नही मिलता मालिक आज की खेती भाग्य समय एके बराबर है फसल अच्छी हुई त लोग संमझ लेत है कि समय तकदीर अच्छी है नाही होत है तो मान लेते है कि समय तकदीर ठिक नही चलत बा गांव के नवजवान का करे रोजी रोजगार के नाम पर मजूरि बची गयी है कुछ नवजवान त मन मारीक़े मजूरि  कर लेत हईन मगर बहुत नाही करि सकतन उन्हें चाही सुथन सूट बूट माई बाप के औकात है नाही का करे बजारे जात है कुछ रोजी रोजगार करत है कुछ बवाल काटत है अब आपे बताओ हाकिम एमा प्रधान का कर सकतन सोमारु ने दारोगा शमशेर खान को ऐसा घुमाया की वो चकरा गए बोले प्रधान तू बिल्कुल बेवकूफ या बकलोल नाही है तू त अपने गांव के पूरा अर्थव्यवस्था अर्थशास्त्र बताई दिये बीच  मे शोमारू टोकते हुए बोला हाकिम एक बात तो बताये नाही की हमरे गांव वालन के आमदनी के एक हिस्सा कोरट कचहरी में जात है हर टोलन पर पचास साठ किता मुकदमा है  ओहुँमें गांव बर्बाद है दरोगा शमशेर बोले प्रधान जी आपकी जिम्मेदारी बनती है कि गांव के विवादों का निपटारा गांव में ही सहमत से करा दे शोमारू बोला हाकिम हम खाली पद के प्रधान हई कद काम के प्रधान लाला ग़ज़पति और पंडित महिमा है कारण की हम ठहरा  गंवार मनई सरकारी काम काज उहे लोग देखतेंन गांव के भी सगरो मनई जानत है कि हम पद के प्रधान हई कद में हम सोमारू हई त हाकिम प्रधानी की जिम्मेदारी संबंधी कौनो जानकारी पंडित महिमा और ग़ज़पति दे सकतेंन।दारोगा शमशेर समझ गया कि गांव के मेह लाला ग़ज़पति और पंडित महिमा है और ठाकुर तीसरा साथी अब दुनियां में नही है पण्डित महिमा और लाला ग़ज़पति को तो दरोगा शमशेर अपने धौंस में लेने के सारे तरीके अपना चुका था मगर उसे विश्वास नही था कि उसके धौस में पंडित और लाला की जोड़ी जल्दी फंसेगी फिर भी वह पंडित और लाला पर विशेष नज़र रख रहा था ।विल्लोर गांव में एक पुराना शिव मंदिर था जहां गांव के हर टोले के लोग समयानुसार बैठते थे पुजारी शिवा गिरी बड़े ही शौम्य मृदु और विनम्र सनातनी थे उनकी इज़्ज़त गांव के सभी लोग करते थे मंदिर से लगभग पांच सौ मीटर दूर एक मस्जिद भी थी जहाँ सिर्फ मुस्लिम इस्लामी तकरीर और जुमे की नवाज़ को एकत्र होते थे होली और ईद एक साथ पड़ने से गांव में एक भय व्याप्त था कि त्योहार के दिन कोई अनहोनी न हो जाय इधर पंडित और लाला ग़ज़पति ने शोमारू प्रधान को बुलाकर हिदायत दी कि कुछ भी हो जाय मगर त्योहार शांति पूर्वक बीतना चाहिये शोमारू प्रधान ने स्वय जाकर सभी टोलो पर विनम्रता पूर्वक हाथ जोड़कर होली और ईद एक साथ सौहार्दपूर्ण वातावरण में मनाने के लिये निवेदन किया मगर होना तो कुछ और था ईद और होली से ठीक एक दिन पहले जिस रात होलिका दहन हुआ उसी रात शिवा गिरी की हत्या हो गयी सुबह उनके मृत शरीर को जानवर घसीट रहे थे सुबह होली और  ईद के दिन यह बात पूरे गांव में आग की तरह फैल गयी लोग इकठ्ठा हुए देखा कि शिवा गिरी की बड़ी बेरहमी से गला रेत कर नृशंस हत्या कि गयी है तरह तरह के कयास लगाए जाने लगे तब तक दरोगा शमशेर भी वहां पहुंच गए मस्जिद के मौलवी मियां नसीर भी वहां मौजूद थे मगर किसी के संमझ में यह नही आ रहा था कि शिवा गिरी की हत्या किसने की हैं।पूरे गांव का माहौल गमगीन था सभी गांव वालों ने फैसला किया कि इस वर्ष होली नही मनाई जाएगी मगर मुस्लिम समुदाय के लोग ईद मनाने के लिये तैयार थे विलम्ब ही सही ईद की नाबाज़ दिन बारह बजे अता की गई और ईद मिलन समारोह भी चलने लगा इधर दरोगा शमशेर ने गुमनाम मुकदमा दर्ज कर शिवा गिरी का पोस्टमार्टम कराकर  शव गांव के हवाले कर दिया गांव वालों ने बड़ी श्रद्धा से सारे गीले शिकवे भुला कर शिवा गिरी को अंतिम विदाई दी और मंदिर के ही निकट उनकी समाधि बना दिया और उनके पुत्र देवा गिरी को मंदिर का पुजारी नियुक्त कर दिया।।

कहानीकार -नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

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