डॉ रश्मि शुक्ला

पिता जी


पिता का आशीर्वाद मिला और प्यार भी
मिली जिंदगी फुल सब मुस्कराने लगी।
मन के धरातल पर अनुभव हुआ, भावना गीत बन गुनगुनाने लगी।

ज्ञान-अनुदान, वरदान पिता ने दिया,साधना के समर वे जताते रहे,
स्नेह, संबल दिया सुक्ष्म व कारण से,भावना को परिष्कृत बनाते रहे।

आप ने सद्बुद्धि जगाकर, दिव्य मार्ग पर हमें बढ़ाया, 

आपने निर्मल भाव उभारे,सब शुभ पथ को सरस बनाया।

प्रज्ञा प्रखर रूप आप हैं,पिता ने पालन-पोषण कर बड़ा बनाया,

अग्निरूप तेजस्वी, जीवन यज्ञ हमें समझाया। 

कुछ न अपने हित सँजोते, दान में है हर्ष, 
रक्त, मज्जा भी लुटाती, सतत वर्ष। 

मनुज का निर्माण, करते,मनुज का निर्माण, 

कर रहे परित्राण, सबका कर रही परित्राण। 

दुःख सहन, आतिथ्य, सेवा,त्याग आप  के धर्म, 
प्यार, करूणा और दया से भर रहा है मर्म। 

सुधा की धार को आज,  परिवार में आपस में आप ने भर दी,

चले सौहार्दपूर्ण से प्लावित हृदय, हम सब मे भर दी।

डॉक्टर रश्मि शुक्ला (समाज सेविका)
 प्रयागराज

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...