नंदिनी लहेजा

विषय-बचपन

जीवन सफर का प्रथम  चरण  है बचपन
   पवित्रता व् सादगी  का दर्पण  है बचपन
अल्हड़ता  और चंचलता  से भरा हुआ
    ईश्वर  का एक रूप होता है बचपन
पीछे मुड़  जब बचपन को हम निहारते अपने
    लगता क्यों जल्दी से छूटा अपना बचपन
      अनगिनत  यादों को समेटे हुए,
आज फिर याद आ  रहा अपना  बचपन
     घंटो खेलते रहना सखियों  संग अपने
वो लंगडी  वो फुगड़ी वो लुकाछुपाई
    वो माँ का बुलाना ,कहना अब तो कर लो पढ़ाई
पापा के पहले घर पहुँच जाना अपने
  डर  मन में रहना की कही हो न पिटाई
वो दादी से नित नई कहानी सुन कर सोना
   नये खिलोनो के लिए जिद करना और रोना
     उन प्यारी यादों में खोकर,आज फिर जी उठा
इन अखियों  में बचपन

नंदिनी  लहेजा
रायपुर (छत्तीसगढ )
स्वरचित मौलिक

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...