पिता
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अपनी खुशियाँ त्याग कर
अपना भाव खो दे
औलाद की खुशियों पर
खुद को वार दे
वो पिता है।
कभी हाथी कभी घोड़ा
कभी बच्चा बनकर
अपने आंसू पीता जो
वो पिता है।
दुःखी बच्चे न हों
इसलिए जो
अपनी हर व्यथा हर पीडा़
छुपा सहते हुए जीता
वो पिता है।
हर दर्द सहते हुए भी
औलाद संग खिलखिलाये
वो पिता है।
कभी न घबराने
अपने साथ होने का
वटवृक्ष की तरह साये का
जो अहसास कराये
वो पिता है।
:::::सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा(उ.प्र.)
©मौलिक, स्वरचित
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