एस के कपूर श्री हंस

विषय।।मुक्तक।।*
*।।रचना शीर्षक।।*
*।पत्थर के मकान।कंक्रीट का जंगल बन गया जहान।*
1
आजकल घर नहीं पत्थर के मकान होते हैं।
सवेंदना शून्य  खामोश से वीरान होते हैं।।
घर को रैन बसेरा कहना   ही  ठीक होगा।
कुत्ते से सावधान दरवाजे की शान होते हैं।।
2
घर में चहल पहल नहीं सूने  ठिकाने हैं।
मकान में कम बोलते मानो कि बेगाने हैं।।
सूर्य चंद्रमा की   किरणें  नहीं आती यहां।
संस्कारों की बात वाले हो चुके पुराने हैं।।
3
हर किरदार में अहम  का  भाव होता है।
स्नेह प्रेम नहीं दीवारों   से लगाव होता है।।
समर्पण का समय   नहीं  किसी के पास।
आस्था आशीर्वाद का नहीं बहाव होता है।।
4
आदमी नहीं मशीनों यहाँ  का वास होता है।
पैसे  की चमक का मतलब खास होता है।।
मूर्तियाँ ईश्वर की होती बहुत ही आलीशान।
पर आचरण कहीं नहीं  आसपास होता है।।
5
जमीन नहीं यहां पर   बड़े  मकान होते हैं।
मतलब के  ही आते कुछ  मेहमान होते हैं।।
दौलत से मिलती सारी   नकली खुशी  यहाँ।
पैसे पर खड़े ये घर नहीं ऊँचे   मचान होते हैं।।
*रचयिता।।एस के कपूर श्री हंस।।*
*बरेली।।।*
मोब  9897071046।।।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।।।

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