डॉ० रामबली मिश्र

आल्हा छंद

आया बादल झूम रहा है,
     रिमझिम-रिमझिम की बौछार।
बादल बना प्रकृति का प्रेमी,
     मार रहा है खूब फ़ूहार।
बादल में उत्साह बहुत है,
     मानव के प्रति शिष्टाचार।
पवन देव से हाथ मिलाता,
      करता जीवों का सत्कार।
मचल रहे खुशियों से प्राणी,
     सबके शीतल सुखद विचार।
मौसम लगता बहुत सुहाना,
     मन में उठता प्रेम गुबार।
धराधाम का जल से स्वागत,
     करती बूँदें प्रीति प्रहार।
औषधीय पौधे उग आये,
बादल को करते स्वीकार।
धान रोपना अब संभव है,
     बादल का मानो उपकार।
रोम-रोम पुलकित अति हर्षित,
      मन अरु वदन बहुत मनहार।
ठंडी-ठंडी हवा बह रही,
     परम प्रसन्न हृदय का द्वार।
तरुवर की घन शाखाओं से,
     टपक रहा है नीर अपार।
मानसून प्रिय मधुर मनोरम,
     आह्लादक अति प्रिया बहार।
खिलखिलाय कर हँसते चेहरे,
     यह निसर्ग स्वर्णिम उपहार।
है उपकारी सदा वारिदल,
      यही सुमन का है आधार।
रिमझिम का आनंद उठाओ,
      मस्त जिंदगी रहे सवार।
कजली गा-गा खुश रहना है।
     भवसागर को करना पार।

रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुर
9838453801

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