सौरभ प्रभात

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          *परशुराम-लक्ष्मण संवाद*
                      *(आल्हा छंद)*

मिथिला में जब टूटा धनु तो
भृगुसुत करते आये रोष।
किसने है ललकारा पौरुष?
बोलो किसका है ये दोष।।

          हँसकर बोले लक्ष्मण, मुनिवर!
          करते हो क्यों इतना क्रोध।
          कितने धनु हीं तोड़े हमने
          आप बने न कभी अवरोध।।

बालक! ये धनु शिव शंकर का
बंद करो अपना आलाप।
दंड मिलेगा दुष्ट अधम को
सह न सकेगा मेरा ताप।।

          लक्ष्मण बोले, फरसा धारी!
          हमको लगते सम सब चाप।
          एक पुराने धनु का भंजन
          क्योंकर लगता तुझको पाप।।

          दोष नहीं रघुवर का इसमें
          शौर्य नहीं सह पाया चाप।
          मात्र छुअन से भग्न हुआ ये
          करते हो तुम व्यर्थ प्रलाप।।

भृगुवंशी ने भौंहें तानी
लाल नयन से घूरे बाल।
रोष प्रकट करते फिर बोले
सम्मुख तेरे आया काल।।

शौर्य अमिट है अनुपम मेरा
बालक तू कितना नादान।
कितने क्षत्रिय मारे मैनें
क्या है तू इससे अनजान।।

          आप बड़ाई करने वाले
          देखें मैनें बहुतों वीर।
          एक गरज जो रघुकुल मारे
          हो जायेगा फरसा धीर।।

          ब्राह्मण गौ सुर और उपासक
          रघुकुल करता इनका मान।
          फरसे के धारक का वरना
          मिट जाता फिर नाम निशान।।

मारा जायेगा मेरे हाथों
विश्वामित्र इसे संभाल।
दोष नहीं फिर मेरा देना
या मुख इसके अंकुश डाल।।

✍🏻©️
सौरभ प्रभात 
मुजफ्फरपुर,बिहार

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