"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल
पावनमंच को प्रणाम, तरु,पेड़ का महत्व मेरी रचना में अवलोकन करें... जौ पेड़ रहैंगे रहेगी खुशाली छाया तथा हरियाली मिलैगी।। फल अरू फूल खिलैंगे सदा अरू बाग बसन्त बहारैं खिलैंगी।। प्राणवायु बहार रहेगी सदा अरू याही कमी कबहूँ ना खलैगी।। भाखत चंचल जौ तरू नाही तौ या प्राणवायु ना खोजे मिलैगी।।1।। यै पेड़ मधूप ई जामुन आम जो खाइ रहे हम आप सभी।। दादा औ बाबा लगाये जिन्हँय वै तौ नाम लिखाये कतौ ना कभी।। उपकार करो परूपकारकरौ मनमा अभिमान ना लाओ कभी।। भाखत चंचल नीरद औ नदी नाम गुमान करैं ना कभी।।2।। जो पेड़ लगाइ के चित्र खिंचावतु नाम करैं अपना अपना।। व्याप्त प्रदूषण है कतना संरक्षण भार अहय कतना।। पेड़ रिपू जग मा कतने यहौ भाव सुभाव धरौ मनमा।। भाखत चंचल पाले बिना यय पेड़ भये जौ निरा सपना ।।3।। आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल। ओमनगर, सुलतानपुर, उलरा,चन्दौकी, अमेठी l U. P. Mobile__8853521398, 9125519009ll
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