आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल

पावनमंच को  प्रणाम, तरु,पेड़ का महत्व मेरी रचना में अवलोकन करें...     जौ पेड़ रहैंगे रहेगी खुशाली छाया तथा हरियाली मिलैगी।।                             फल अरू फूल खिलैंगे सदा अरू बाग बसन्त बहारैं खिलैंगी।।                            प्राणवायु बहार रहेगी सदा अरू याही कमी कबहूँ ना खलैगी।।                         भाखत चंचल  जौ तरू नाही तौ या  प्राणवायु ना खोजे मिलैगी।।1।।                  यै पेड़ मधूप ई जामुन आम  जो खाइ रहे हम आप सभी।।                          दादा औ बाबा  लगाये जिन्हँय  वै तौ नाम लिखाये कतौ ना कभी।।                  उपकार करो परूपकारकरौ  मनमा अभिमान ना लाओ कभी।।                      भाखत चंचल नीरद औ नदी नाम गुमान करैं ना कभी।।2।।                         जो पेड़ लगाइ के चित्र खिंचावतु नाम करैं अपना अपना।।                                व्याप्त प्रदूषण है कतना संरक्षण भार अहय  कतना।।                                   पेड़ रिपू जग मा कतने यहौ भाव सुभाव धरौ मनमा।।                             भाखत चंचल पाले बिना यय पेड़ भये जौ निरा सपना ।।3।।                            आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल। ओमनगर, सुलतानपुर, उलरा,चन्दौकी, अमेठी l U. P. Mobile__8853521398, 9125519009ll

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...