संजय जैन बीना

*कोई देख न ले*
विधा : गीत

इस बात का डर है,
वो कहीं रूठ न जायेंI
नाजुक से है अरमान मेरे, 
कही टूट न जायें।।

फूलों से भी नाजुक है, 
उनके होठों की नरमी I
सूरज झुलस जाये, 
ऐसी सांसों की गरमी I
इस हुस्न की मस्ती को,  
कोई लूट न जायें I
इस बात का डर है,
वो कहीँ रूठ न जायें I।

चलते है तो नदियों की, 
अदा साथ लेके वो।
घर मेरा बहा देते है,
बस मुस्कारा के वो I
लहरों में कही साथ,
मेरा छूट न जायें I
इस बात का डर है,
वो कहीं रूठ न जायें I।

छतपे गये थे सुबह , 
तो दीदार कर लिया I
मिलने को कहा शामको, 
तो इनकार कर दिया I
ये सिलसिला भी फिरसे, 
कहीं टूट न जायें।
इस बात का डर है,
वो कहीं रूठ न जायें I।

क्या गारंटी है की फिरसे, 
कही वो रूठ न जाएं।
मिलने का बोल कर 
कही भूल न जाये।
हम बैठे रहे बाग़ में,
उनका इंतजार करके।
वो आये तो मिलने पर 
देखकर हमें चले गये।। 
उन्हें डर था इस बात का,
की कोई हमें देख न लेI।

जय जिनेन्द्र देव 
संजय जैन "बीना" मुंबई 
16/06/2021

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...