शीर्षक - सावन आने वाला है।
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इन्द्र धनुष के सतरंगों से,
वृष्टि धरा पर आयी है।
धुंधली सी तस्वीरें सारी,
निखर-निखर कर छायी हैं।
देख धरा तूं नभ शरारत करने वाला है।
सावन आने वाला है-2।।
बारिश के बूंदों के सुखदायक संगीतों से,
छेड़ रहे विरही चातक नव गीत यही।
सुख - दु:ख के इस मधुर स्वप्न में,
शरद, शिशिर सब ऋतुएं सही।
उठ रहा जलप्रपात अब आसमान मिलने वाला है।
सावन आने वाला है-2।।
जिंदा लाशों के इस जग में,
इच्छाएं हर ओर पड़ी हैं।
आशाओं से प्रमुदित मन में,
सुमधुर संगीत छिड़ी हैं।
पहन हरित परिधान धरा प्रियतम आने वाला है।
सावन आने वाला है-2।।
कानन के सब जीव-जन्तु अब,
नव उमंग से भरे पड़े।
रिमझिम सी बारिश की बूंदें।
गात धरा पर लोट पड़े।
रोम रोम हैं सिहर उठे मेघ गगन में जाने वाला है।
सावन आने वाला है-2।।
तन शीतल है मन निर्मल है,
व्याकुल आश लगाए बैठी है।
निर्झर बहती अंश्रुधार अब,
जीवन की डगमग कश्ती है।
मिल जाए तिनके का सहारा किनारा आने वाला है।
सावन आने वाला है-2।।
- दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
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