★कौन? किस पर भारी!★
बेशक़!
अपनी समझ से
सब कुछ ठीक करता हूँ मैं!
पर कभी-कभी सामने अपने खड़े होते हैं!
और मैं कभी भी अपने-पराये का
भेद नहीं करता हूँ!
जो सही है, वो सही है
और जो गलत है, वो गलत!
पर जब मैं बोलता हूँ,
तो लोग मेरी बातों को तौलने लगते हैं!
रिश्तों और सम्बन्धों के तराजू पर!
फिर… शुरू होता है!
आरोप-प्रत्यारोप का एक नया खेल!
और मैं शांत होकर एक कोने पर बैठ जाता हूँ!
और लोगों के विचारों को सुनता हूँ!
फिर मन ही मन गुनता हूँ!
और सोचता हूँ!
न जाने कैसे हर बार रिश्ता और सम्बन्ध!
सत्य पर, भारी पड़ जाता है!
– कबीर ऋषि
बांसी सिद्धार्थनगर, उ.प्र.
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