"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल
आज की रचना सामयिक मगर केवल एक पद ,पावनमंच को मेरा सप्रेम एवम् सादर प्रणाम, अवलोकन करें... लौ लू हटी बादरी छाई।। श्रमसीकरि अबु हटी तन वदन मस्त पवन चौपाई।। इत उत घूमत मन नहि निधरकु ध्याननु पंथ पराई।। पानी घुसा घरौंदा जाके बाहेर घूमत जीव देखाई।। सबु दिशि निरखहू यहू बादरी झुंडनु दौड़ सुहाई।। छत याकी अवनी सूखै ना सुखवन टरतै दिवसु सिराई।। कबौ कबो मिलिहँय ना रोटी घरनी बहानै सुझाई।। लरिकय घुमिहँय बागु बगैचनु जामुन आम चबाई।। ढुरिहँय तनिक पवन जबु रैननि लरिकनु बागन धाई।। चंचल सखियनु करैं बतकही बागन झुण्ड रचाई।।1।। आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल।ओमनगर,सुलतानपुर, उलरा,चन्दौकी, अमेठी, उ.प्र.।। मोबाइल....8853521398,9125519009।।
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