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आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल
आज की रचना सामयिक मगर केवल एक पद ,पावनमंच को मेरा सप्रेम एवम् सादर प्रणाम, अवलोकन करें... लौ लू हटी बादरी छाई।। श्रमसीकरि अबु हटी तन वदन मस्त पवन चौपाई।। इत उत घूमत मन नहि निधरकु ध्याननु पंथ पराई।। पानी घुसा घरौंदा जाके बाहेर घूमत जीव देखाई।। सबु दिशि निरखहू यहू बादरी झुंडनु दौड़ सुहाई।। छत याकी अवनी सूखै ना सुखवन टरतै दिवसु सिराई।। कबौ कबो मिलिहँय ना रोटी घरनी बहानै सुझाई।। लरिकय घुमिहँय बागु बगैचनु जामुन आम चबाई।। ढुरिहँय तनिक पवन जबु रैननि लरिकनु बागन धाई।। चंचल सखियनु करैं बतकही बागन झुण्ड रचाई।।1।। आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल।ओमनगर,सुलतानपुर, उलरा,चन्दौकी, अमेठी, उ.प्र.।। मोबाइल....8853521398,9125519009।।
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