पिता
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कौस्तुभ सक्सेना कानपुर
(कक्षा 9)
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जब जन्मे हम दोनों तब हमें दिल से लगाया था,
माथा चूम कर अपना प्यार जताया था,
खुशी के मारे ढोल-ताशा बजवाया था।
हाथ थाम के हमको चलना सिखलाया था,
जमीन पर गिरे हम तो सम्हलना सिखाया था।
उंगली पकड़ कर पढ़ना-लिखना सिखाया था,
अच्छे संस्कारों का ज्ञान दिलवाया था।
हर छोटी-बड़ी ज़िद को पूरी कर जाते हैं,
और अपने सपनों का बलिदान कर आते हैं।
सपने पूरे करने का ख़्वाब दिखाते हैं,
छोटे बड़े कदमों पर अपना सहयोग जताते हैं।
अगर होती तबियत खराब तो रात भर जाग कर अपनी गोद में सुलाते है,
यदि हम पर आंच आई तो वो हमेंशा हमारी ढाल बन जाते हैं।
हमारी जिंदगी की कीमती डोर हैं,
वो पिता कहलाते हैं। -2
और आज भी हमे अपने दिल से लगा कर जो प्यार जताते हैं,
वो ही पिता कहलाते हैं।
वो ही पिता कहलाते हैं।
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कौस्तुभ सक्सेना
जनरल गंज कानपुर नगर।
9838015019.
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