डॉ० रामबली मिश्र

गरीबी    (सजल)

मत गरीब को अपमानित कर।
हर मानव को सम्मानित कर।।

नहीं गरीबी बुरी बात है।
जीना सीखो इसको सहकर।।

जो गरीब की सेवा करता।
क्या कोई है उससे बढ़कर??

जो गरीब को गले लगाता।
स्नेहयुक्त वह अति प्रिय सुंदर।।

जिसे गरीबी में भी सुख है।
उसको जानो साधु-संतवर।।

अर्थपीर जो सह लेता है।
सहनशील वह मानव प्रियवर।।

है गरीब की बस्ती   पावन ।
जहाँ खड़े सबरी के रघुवर।।

भले दरिंदे प्रश्न चिह्न हों।
बनी गरीबी उनका उत्तर।।

नहीं पसन्द महल मानव को।
मानवता हरदम गरीबघर।।

ज्ञान सिखाती सदा गरीबी।
समझ गरीबी को प्रिय गुरुवर।।

जान गरीबी नहिं दुखदायी।
कढ़ता मानव बनत उच्चतर।।

आर्थिक संकट नहीं गरीबी।
है गरीब जिसका दिल बदतर।।

रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801

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