तितली
मेरे सपने में आई रंगीन तितलियां ,
तितलीयां कहने लगी मुझसे चल हवा में उड़ ।
अपनी पंखों को फैला थोड़ी सी मुस्कुरा ,
तुम भी थोड़ा सा हंस लिया करो ।
अपने लिए भी जी लिया कर ,
खुद को इतना मत तड़पा ।
मेरी तरह हवा में लहरा,
कुछ तो गुनगुना।
बहुत खूबसूरत थी वह हसीन सपने,
मानो जैसे मैं वादियों में उड़ने लगी।
हवाओं में खुशबू बिखेरने लगीं,
तितलियों की तरह इठलाती और बलखाती रही।
कभी इस डाल दो कभी उस डाल को चुमती रही, मदमस्त होकर इधर से उधर घूमती रही ।
ना जाने कब आंख खुली,
और सारे सपने टूट कर बिखर गए ।
मैं फिर से वापस वही अपने आप से मिली,
कितने हसीन थे वो पल ।
काश हम भी तितली होते,
तो अपने पंखों को हवा में खूब लहराते।
ऊंची ऊंची उड़ान भरते,
कभी जमीन तो कहीं आसमान की ख्वाब देखते। लिखने को तो पूरी कायनात कम पड़ जाते हैं,
परंतु आज सपने को यहीं छोड़कर कल कुछ और लिखते।
कुमकुम सिंह
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