दुनिया ये कहती!
सागर बनाकर तब बादल उड़ाया,
हरे - हरे वृक्षों से धरा सजाया।
कण-कण में व्याप्त है उसकी परछाई,
बात-बात में देते उसकी दुहाई।
गाते परिन्दे जिसका गुणगान हैं,
दुनिया ये कहती वही भगवान है।
घुमावदार पहाड़ों को किसने बनाया,
ग्लेशियर से उसको किसने सजाया।
जड़ी-बूटियों से भरा क्यों खजाना,
आसमान इतना बड़ा क्यों वो ताना।
सुबह-शाम होती आरती-अजान है,
दुनिया ये कहती वही भगवान है।
क्यों लोग आपस में खून हैं बहाते,
बम,एटम-बम का दंभ भी दिखाते।
खिलती है जुही तो खिलने दे उसे,
गमकती है दुनिया गमकने दे उसे।
उसके करम से ये जिन्दा जहान है,
दुनिया ये कहती वही भगवान है।
रंग -रूप, आकर वैसा नहीं है,
जो कोई सोचता है,वैसा नहीं है।
सूरज -चंदा है उसका खिलौना,
ज्ञान उसके आगे हमारा है बौना।
पूरी क़ायनात का आलाकमान है,
दुनिया ये कहती वही भगवान है।
जल,जंगल,जमीन अब हम बचाएँ,
खुद अपने हाथों से वसुंधरा सजाएँ।
दूषित करे न कोई आबो-हवा को,
खाना पड़े न उस महंगी दवा को।
पर्यावरण उसी का वरदान है,
दुनिया ये कहती वही भगवान है।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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