शीर्षक - बरगद
विधा - कुण्डलियाँ
बूढ़ा बरगद रो रहा, मिले नहीं अब छाँव।
महुआ पीपल सूखते, प्राण लगे हैं दाँव।।
प्राण लगे हैं दाँव, सिसकती आँगन तुलसी।
मृत्यु विचारे बैठ, प्रिया कब यौवन हुलसी।
पूछे सौरभ आज, समय से उत्तर गूढ़ा।
रोये क्यों चौपाल, छिने जब बरगद बूढ़ा।।
-सौरभ प्रभात
मुजफ्फरपुर, बिहार
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