वर्ण पिरामिड
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लज्जा
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ये
बड़े
बेशर्म
हैं,लज्जा तो
छूकर कभी
नहीं गुजरती
लज्जा विहीन हैं ये।
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ओ
यारों
कुछ तो
शर्म करो
कब तक ये
बेशर्मी दिखाते
बेहयाई करोगे।
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हैं
हम
सब ही
बेरहम
जो भी करना
हो आकर करो
लज्जित हो जाओगे।
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ये
कैसे
सुधरें
भला,जब
खानदान ही
इसी रंग ढंग
में रचा बसा है।
■ सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921
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