बरखा रानी!
आयी फिर से बरखा रानी,
ये तो है ऋतुओं की रानी।
बाँटेगी सुख-दुःख फिर ये,
लिखेगी कोई नई कहानी।
भींग रहे हैं महल-झोपड़ी,
भींग रहे हैं जड़ -चेतन।
भींग रहे हैं पंख -पखेरू,
भीग रहा है अंतर्मन।
बुझा रहे हैं प्यास परिन्दे,
औ देख रहे हैं सपना।
जग में नहीं पराया कोई,
हर कोई है अपना।
बादल लेता सागर से पानी,
नदी -सरोवर भरता।
फूल -फूल औ कली -कली की,
सबकी पीड़ा हरता।
खेतों में फसलें सजती हैं,
देख कृषक मुस्काते।
घर -घर अन्न भरेंगे एक दिन,
सपनों से लद जाते।
परिश्रम से हर काम है संभव,
बादल ऐसा कहता।
जो करता कुदरत की सेवा,
वर अमरत्व का पाता।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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