बिरसा मुंडा ---
कौन कहता है क्रांति को चाहिये कारण और बहना ।।
क्रांति तो धर्म कर्म कर्तब्य दायित्व बोध के उत्साह उमंग का है तरन्नुम तराना।।
जज्बे का जूनून है जज्बातों के रिस्तो रीत प्रीती परम्परा की अक्क्षुणता पर जीना मरना मिट जाना।।
जूनून आग है चिंगारी है मशाल है दुनियां में मिशाल का मशाल है ।।
अपनी हस्ती की हद जमी से आसमान से आगे जहाँ के नए सूरज चाँद की हैसियत की गर्मी ताकत से तक़दीर की इबारत लिखने का आगाज़ अंदाज़ के जांबाज़ से वक्त अपने बदलने की करवट लेता।।
वक्त अपने निरन्तर प्रवाह में उठते गिरती अपने कदमों की ताकत के लिये इंतज़ार करता खुद से गुहार करता खुद में खुदा का इज़ाद करता जहाँ में खुद का खुदाई इज़हार करता।।
दुनियां में इंसान को इंसान से मोहब्बत तकरार की टंकार की गूँज की गवाही देता।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश
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