चंचल हरेंद्र वशिष्ट

शीर्षक: 'प्राणवायु प्रदायक वृक्ष'

ना काटों हमें!
तुम्हारे काम बहुत आएंगे
गर्मी में छाँव
बारिश में ठाँव
फल फूल
प्राणवायु
औषधि
शाक,सब्ज़ी
सभी देते हैं
फिर भी??
बदले में तुमसे
क्या लेते हैं?
पौधेपन में ज़रा सी
देखरेख,और पानी ही?
गर्मी तो सूरज बाबा
ही पहुँचा देते हैं
हवा हौले हौले से
सहला जाती है हमें
बादल भी नेह
बरसा जाते हैं मौसम,बेमौसम
और तो कुछ भी नहीं
चाहते हम किसी से
बस थोड़ा सा प्यार देकर देखो हमें
वादा है तुमसे,तुम्हारे अपनों से भी ज़्यादा काम आएंगे
तुम पर जीभर नेह लुटाएंगे
कभी नहीं बिसराएंगे
तुम्हारी पीढ़ियों को भी दुलराएंगे
जब तक है अस्तित्व हमारा 
तुम्हारा नाम अमर कर जाएंगे
तुम्हारे इस पुण्य से असंख्य प्राणी, मनुष्य और पक्षी ,जीव-जंतु लाभ पाएंगे
और तुम्हें सदैव ढेरों दिल से दुआएँ दिए जाएंगे
विश्वास मानों हमारा
मत काटो हमें!
हो सके तो व्यर्थ प्रतीत हो रहे बीजों,गुठलियों से
और पौधे उपजाओ
हमारी संख्या, प्रजाति बढ़ाओ
मानव जाति का मंगल करो
धरती को हरा भरा बनाओ
प्रदूषण मुक्त बनाओ
ख़ूब पेड़ पौधे लगाओ
 ऐसे पर्यावरण दिवस मनाओ
सिर्फ़ खोखले नारे मत लगाओ।
सिर्फ़ खोखले नारे मत लगाओ।

स्वरचित एवं मौलिक:
चंचल हरेंद्र वशिष्ट
नई दिल्ली
@सर्वाधिकार सुरक्षित

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