शीर्षक "श्रीकृष्णजी की बांसुरी"
श्रीकृष्ण की बाँसुरी सुरीला,
आवाज मात्र से तन-मन,मचले,
चाहे राधा हो या मीरा या गोपी,
दौड़ा चला आऐ,कृष्ण ने बुलाऐ।
किसन की बांसुरी मोहन,
मधुर,सरगम,तान है सुनाऐ,
गोप,गोपा का मन चंचल-भाऐ,
न रह सकें धावन बिना,सुनके,रास।।
चाहे यमुना का तट हो या गंगा,
हर छोर से माधुर्यभरा सूर सुनाऐ,
अहोभाग्य है जो बेणु रहके बजाऐ
माखनचोर,नंदकिशोर बेणुधर कहलाऐ।।
श्रीकृष्ण हैं चपल,चंचल भाव से,
रह रह के मुरलीगंज,आप्लावित,
सुन गोपागंना,मटका छोड़,धं।ऐ,
कवि देखके सुन्दर नजारा,कलम,उठाऐ।।
श्रीकृष्ण लीला-माधव लीला रचे,
श्रीराधा,मीरा,रुक्मणी दौड़ लगाऐ
ऐसा पावन नजारा मनको है भाऐ
कृष्णचन्द्र हैं प्रेमानंद,लीलाचोर,कहलाऐ।।
अरुणा अग्रवाल।
लोरमी,छःगः,
🙏🌹🙏
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